Hindi, asked by sunnysaini92002, 10 months ago

'नारी तेरे रुप अनेक ' विषय पर 100 - 150 शब्दो मे एक अनुच्छेद लिखें।

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Answered by brijeshhkumar1980
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"यत्र नार्यस्तु पूजयंते रमन्ते तत्र देवताः" मनु ने ठीक ही कहा था जहाँ नारियों की पूजा होती है वहां देवता रमण करते है. नारियों के बिना धार्मिक या सामाजिक कोई भी कार्य सफल नहीं होती. नारी सम्माननीय है . भारतीय समाज में नारी का विशिष्ट व गौरव पूर्ण स्थान है. भारतीय संस्कृति में अतीव गौरव की अधिकारिणी सदा से रही है. सभी शास्त्र वेद , पुराण , स्मृत,संस्कृति भी स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी स्वीकारते हैं. नारी को लक्ष्मीस्वरूपा माना जाता है. स्त्री बिना घर,जंगल सदृश होता है. "बिन घरनी घर भूतक डेरा." अर्थात नारी के बिना घर भूतों का स्थान हो जाता है. नारी आवला नहीं सबला है. अपने चरित्र बल से, साधना से ,त्याग से,नारी अपने कुल की समाज की उद्धारक बन जाती है. कहीं पढ़ा था नारी निंदा मत करो , नारी नर की खान . नारी से नर होत है ध्रुव ,प्रह्लाद सामान. कल से दुर्गा पूजा आरम्भ होने वाली है. माँ दुर्गा की पूजा होती है. जगत जननी हैं, पालनहार हैं, शक्तिस्वरूपा हैं. अपने दस रूपों में कभी शक्तिरूप में दानवों का संघार करती है,तो कभी ब्रह्मचारिणी बनकर तपोवल से धरा को पवित्र करती हैं, तो कभी अपने वत्सल्यता की छावों से इस धरातल को अपने में समेटे रहती हैं. सतत रक्षा में संग्लग्न रहती हैं. वास्तव में हर जीव की जीवनदायिनी हैं. हर नारी को अपने अनुरूप बनाने को कटिबद्ध हैं. हम नारी को ही तो हर साल जगाने आती हैं. नारी को हर रूप में जीना सीखाने आती हैं. वास्तव में नारी सृष्टि की अनुपम कृति हैं. देश की रीढ़ है नारी . नारी त्याग और तपस्या की जाज्वल्यमान विभूति है. इसका मूल मन्त्र है - त्याग. नारी का पूर्व जीवन तपस्या काल है और उत्तर जीवन त्याग का काल मानना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा. कवि व लेखकों की लेखनी की विशिष्टता रही है नारी . नारी एक ही है पर उसके रूप अनेक हैं. माँ के रूप में नारी - जननी है, वह अपने संतान के लिए सदैव अडिग रहती है . तपती गर्मी- बारिश की बौछार या कड़ाके की ठण्ड हो, वे अपने संतान की रक्षा किसी भी परिस्थिति में करती है. संसार की रक्षा माँ अम्बे दुर्गा कर रही हैं. धरा को ही लें, वह मानव का कूड़ा कर्कट से ले कर हर भार का वहन अविचल भाव से करती रही हैं. नारी माँ के रूप में अपनी संतान के लिए किसीकी भी परवाह नहीं करती , निर्बाध गति से अपनी संतान के हितार्थ कार्य में संगलग्न रहती है. अपनी संतान को नौ महीने गर्भ में धारण करने तथा विविध कष्ट सहकर उसका पोषण करने के कारण माता की पदवी सबसे प्रमुख है . जगत में माता ही ऐसी है जिस का स्नेह संतान पर जन्म से लेकर शैशव ,बाल्य ,यौवन और प्रौढ़ा अवस्था तक बना रहता है . नारी बहन के रूप में - अपने भाई के लिए मात्र राखी ही नहीं , हर क्षण उसकी रक्षा के लिए तत्पर रहती है. एक पुत्री के रूप में - हर नारी अपने माता -पिता के लिए ,उनके सम्मान के लिए सर्वदा तत्पर रहती हैं . पत्नी के रूप में नारी - प्रत्येक नारी अपने पति के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देती है ,सदैव सहभागिनी रही है .पति को हर परिस्थिति में साथ निभाती है .किसी भी संकट में अडिग रहती है

Answered by Anonymous
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