निर्देशानुसार परिवर्तन कीजिए
उससे हंसा नहीं जाता(कृत्य वाच्य)
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वाच्य का वह रूप जिसमें लिंग एवं वचन कर्ता के ना अनुसार ना होकर कर्म के अनुसार हो उन्हें 'कर्मवाच्य' कहते हैं। 'भाववाच्य' में भावों की प्रधानता होती है और इसमें ना तो कर्ता की प्रधानता होती है, और ना ही कर्म बल्क अकर्मक क्रिया का प्रयोग होकर भाव ही प्रधान होता है
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