‘ निर्धनता ‘ ‘ भेदभाव ‘ से कैसे संबंधित है? निर्धनता तथा वंचन के मुख्य मनोवैज्ञानिक प्रभावों की व्याख्या कीजिए I
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मेरे विचार से निर्धनता का एक बहुत बड़ा कारण भेदभाव ही है। आजकल भेदभाव हर जगह होता है। गरीब और अमीर में भेदभाव, सुंदरता से भेदभाव, शरीर के रंग कारण भेदभाव आदी। इस तरह से लोग जिन्हें पसंद नहीं करते, उनको नीचा दर्शाते है और जिन्हें पसंद करते है, उनको सपोर्ट करते हैं। वजह से लोग आगे नहीं बढ़ पाते चाहे उनमें कितनी भी टैलेंट हो.. एक बार लोगो ने भेदभाव शुरू किया तो जिन पर अत्याचार हो रहा है, उनके लिए आगे बढ़ना बहुत मुश्किल हो जाता है और दूसरे लोग भी उन्हें बुरा समझने लगते है। कारण वो निर्धन भी हो जाते है..
अंत में मै ये ही कहना चाहूंगी कि हमें भेदभाव नहीं करना चाहिए। हम सब एक है और एक साथ मिलके ही आगे बढ़ पाएंगे। हमें किसी की शकल देखेके उन्हें अच्छा नहीं सोचना चाहिए.. ये मत देखो कि वो गरीब या अमीर है.. अमीर तो कोई भी बन सकता है लेकिन उन्हें मौका तो मिलना चाहिए। अपनी पहचान बनाओ अपनी खूबियों और चरित्र से नाकी पैसों और रूप से..
ये मेरे विचार है.. हर किसी के विचार अलग हो सकते है। जरूरी नहीं कि एक सही हो तो दूसरा गलत हो। :)
"निर्धनता के संदर्भ में भेदभाव का अर्थ उस तरह के व्यवहार से है जिसके अंतर्गत धनी एवं सुविधा संपन्न व्यक्तियों द्वारा निर्धन एवं अभावग्रस्त व्यक्तियों से पक्षपात किया जाता है, उन्हें तुच्छ दृष्टि से देखा जाता है। इस तरह का भेदभाव शिक्षा, रोजगार एवं जीवन के सभी क्षेत्रों में देखने को मिलता है। इस कारण निर्थन एवं अभावग्रस्त व्यक्ति योग्य होते हुए भी जीवन के क्षेत्रों में वो सारी सुख-सुविधाएं नहीं प्राप्त कर पाता है जो कि संपन्न व्यक्ति सरलता एवं सुगमता से प्राप्त कर लेते हैं। इस कारण निर्धन व्यक्ति अपने समुचित प्रयासों को सही परिणाम तक नहीं पहुंचा पाता। इसके फलस्वरूप निर्धन व्यक्ति निरंतर निर्धन होता जाता है। जबकि धनी व्यक्ति और अधिक धनी एवं संपन्न होता जाता है। सीधे सरल शब्दों में कहें तो निर्धनता एवं भेदभाव एक-दूसरे से इस तरह से संबद्ध है कि भेदभाव निर्धनता का कारण भी होता है और निर्धनता का परिणाम भी।
निर्धनता व वंचक के मुख्य मनोवैज्ञानिक प्रभाव निम्न हैं।
निर्धन एवं वंचक व्यक्ति अपनी सफलता की व्याख्या अपने भाग्य के आधार पर करते हैं ना कि अपनी मेहनत और योग्यता के आधार पर। उनका विश्वास होता है कि उनके जीवन को बाहर के घटक नियंत्रित करते हैं जैसे कि भाग्य या समाजिक स्थिति, ना कि उनके अंदर उपस्थित घटक, जैसे कि उनकी योग्यता, उनका साहस या मेहनत।
निर्धन एवं वंचित मनुष्यों में आत्मसम्मान की कमी पाई जाती है। वह सदैव दुखी व चिंतित रहते हैं और अंतर्मुखी हो जाते हैं। उनमें दूरदर्शिता का अभाव होता है और वे भविष्य को सुंदर बनाने हेतु समुचित प्रयास करने की अपेक्षा अपने वर्तमान में ही उलझे रहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वो भविष्य में मिलने वाले बड़े पुरस्कारों के बजाए वर्तमान में मिलने वाले छोटे-छोटे पुरस्कारों को प्राथमिकता देते हैं। क्योंकि उनके अनुसार भविष्य अनिश्चित है । वह निराशा, हीनता एवं अन्याय के भाव के साथ जीते हैं।
निर्धन एवं वंचक व्यक्ति समाज के अन्य लोगों के प्रति द्वेष एवं आक्रोश का भाव रखते हैं।
संज्ञानात्मक कार्यों के संदर्भ में यह परिणाम प्राप्त हुआ है कि उच्च स्तर पर पीड़ित वंचित व्यक्ति बौद्धिक क्रियाओं से संबंधित कार्यों का निष्पादन निम्न स्तर कर पाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह जिस परिवेश में पले-बड़े होते हैं वो उनके संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करता है।
मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में कहें तो निर्धन एवं वंचित व्यक्ति के मानसिक रोगों से पीड़ित होने की संभावना धनी व्यक्तियों की तुलना में अधिक होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि निर्धन एवं वंचित व्यक्ति हमेशा चिंताओं से घिरे रहते हैं। वह हमेशा अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की चिंता करते रहते हैं। उनमें निराशा होती है, हताशा होती है, जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण होता है। उन्हें चिकित्सा सुविधाएं सरल सहज रूप से नहीं मिल पातीं। उन्हें लगता है कि उनका जीवन किसी काम का नहीं है। ऐसी स्थिति में उनमें अधिक मानसिक रोग पाये जाते है। अवसाद भी मुख्यतः निर्धन लोगों का विकार है।
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