निर्वाचन व्यवस्था से क्या अभिप्राय है
Answers
Answer:
भारत में स्वतंत्रता के बाद से ही लगातार निष्पक्ष पारदर्शी और सुरक्षित निर्वाचन प्रक्रिया पर बल दिया गया है। इस संदर्भ में अपनी दक्षता को उन्नत करने के लिये भारतीय निर्वाचन आयोग समय-समय पर विभिन्न सुधारवादी प्रयास करता रहा है।
Explanation:
निर्वाचन व्यवस्था में सुधार एवं नवाचार के बढ़ते कदम : मतदाता पहचान-पत्र की प्रामाणिकता को और भी अधिक पुख्ता बनाने के लिये निर्वाचन आयोग ने अपने सर्वर को प्रत्येक जिले के जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण संबंधी रजिस्टर के सर्वर के साथ जोड़ने का निर्णय लिया है ताकि किसी मतदाता का मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी होने के साथ ही उसका नाम स्वतः ही मतदाता सूची से हट जाए। इस पहल को ‘ई-जिला कार्यक्रम’ के तहत पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पंजाब राज्य में शुरू किया गया था।
निर्वाचन आयोग अब ऐसी व्यवस्था भी शुरू करने जा रहा है जिससे सभी मतदाता केंद्र मतदाता के निवास स्थल से अधिकतम 2 किमी. की परिधि में ही हों।
ईवीएम एवं पारदर्शिता : निर्वाचन प्रक्रिया में पारदर्शिता को बनाए रखने और मतदान के समय होने वाली तकनीकी गड़बडि़यों को समाप्त करने के लिये ईवीएम (Electronic Voting Machine) के माध्यम से मतदान का प्रचलन शुरू किया गया है।
ईवीएम पारंपरिक मतदान पेटी प्रणाली की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित है क्योंकि इसके साथ सहज छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। यदि इसमें कोई तकनीकी खराबी आती है तो खराब होने से पहले तक इसमें रिकॉर्ड किये गए वोट सुरक्षित रहते हैं और उनके लिये दोबारा मतदान की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही, ऐसी स्थिति के निवारण के लिये प्रत्येक मतदान केंद्र में एक अतिरिक्त ईवीएम की व्यवस्था रहती है।
इसके अतिरिक्त, निर्वाचन आयोग ने वी.वी.पी.ए.टी. ( Voter-Verified Paper Audit Trail) नामक तकनीक भी अपनाई है, जिसकी सहायता से मतदाता को यह जानकारी मिल जाती है कि ईवीएम के माध्यम से दिया गया उसका मत वैध था या नहीं (इस तकनीक में मतदाता जैसे ही ईवीएम पर अपने चुनिंदा चुनाव चिह्न संबंधी बटन को दबाता है वैसे ही ईवीएम पर लगी स्लिप पर उससे संबंधित उम्मीदवार का नाम छप जाता है)। साथ ही, इसे रिकॉर्ड के रूप में मशीन में भी संचित कर लिया जाता है ताकि अंतिम परिणाम के बाद उत्पन्न किसी वाद-विवाद की स्थिति में इसका प्रयोग प्रमाण के तौर पर किया जा सके।
नोटा एक विकल्प : ईवीएम में ‘नोटा’ (None Of The Above-NOTA) विकल्प की व्यवस्था भी की गई है;इस विकल्प को चुनने का तात्पर्य होगा कि मतदाता को चुनाव के उम्मीदवारों में से कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है। इस विकल्प का परोक्ष उद्देश्य यह है कि सभी दल साफ-सुथरी छवि वाले योग्य व कर्मठ उम्मीदवारों को ही चुनाव में उतारें।
भारतीय निर्वाचन प्रणाली में ‘नोटा’ के अस्तित्व से पूर्व भी उम्मीदवारों के प्रति अनिच्छा जाहिर करने की व्यवस्था थी। तब ऐसा करने के लिये ‘द कंडक्ट ऑफ इलेक्शन्स रूल्स, 1961’ की धारा 49(O) के तहत मतदाता फार्म 17(।) में अपनी मतदाता संख्या अंकित करके नकारात्मक मत दे सकता था। पीठासीन अधिकारी इस फार्म को चिह्नांकित कर उस पर मतदाता के हस्ताक्षर ले लेता था। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया क्योंकि यह मतदाता की पहचान को सुरक्षित रखने में असमर्थ था।
ड्रोन एवं अन्य तकनीक : 2015 के बिहार विधान सभा चुनावों में निर्वाचन आयोग द्वारा मतदान की निगरानी के लिये ड्रोन का इस्तेमाल, अनिवासी भारतीयों के लिये सेमी इलेक्ट्रॉनिक विधि से मतदान, मोबाइल फोन पर मतदाता केंद्र की अवस्थिति की जानकारी तथा महिलाओं की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिये पूरी तरह महिला पदाधिकारियों द्वारा प्रबंधित मतदान केंद्रों की व्यवस्था इत्यादि कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण नवाचार भी अपनाए गए।पारदर्शी और विश्वसनीय निर्वाचन के लिये सूचना प्रौद्योगिकी के महत्त्व को मद्देनजर रखते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ- नसीम जैदी ने ‘ई-विजन 2020’ का विचार प्रस्तुत किया है जिसमें कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में मोबाइल एप्लीकेशन, सोशल मीडिया, ज्ञान प्रबंधन आदि को शामिल किया गया है। इससे चुनाव संबंधी सूचनाओं और सेवाओं के तीव्र प्रसार में भी मदद मिलेगी।मतों की गणना को और भी अधिक तीव्र व सुरक्षित बनाने के लिये आयोग ने टोटलाइजर मशीन का उपयोग करने की मंशा भी व्यक्त की है।
निष्कर्ष : भारत जैसे वृहद् लोकतांत्रिक देश में निष्पक्ष, पारदर्शी एवं सुरक्षित निर्वाचन के संकल्प की पूर्ति में निर्वाचन आयोग लगातार प्रयासरत है। विभिन्न सुधारों एवं नवाचारों के माध्यम से यह अपनी कुशलता को बढ़ाने का हर संभव तरीका अपना रहा है। भारतीय निर्वाचन व्यवस्था विश्व की सफलतम निर्वाचन प्रणालियों में गिनी जाती है। भविष्य में इससे बेहतर स्थिति के निर्माण में ये सुधारात्मक कदम निश्चित ही कारगर सिद्ध होंगे। इसके अलावा, विधानसभाओं, लोक सभा एवं स्थानीय चुनाव एक साथ करवाने, वोटर को दिये गए वोट की स्लिप उपलब्ध करवाने, चुनावों में राज्य द्वारा फंडिंग, सूचना तकनीकी एवं अन्य तकनीकियों के प्रयोग आदि विकल्पों पर चर्चा लगातार जारी है ताकि बदलते समय के अनुरूप निर्वाचन व्यवस्था को प्रासंगिक बनाया जा सके।