निर्वाह आहार के दो कार्य लिखिए।
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विटामिन – जुगाली करने वाले पशुओं के आमाशय में सूक्ष्मजीवों द्वारा अधिकतर विटामिनों (बी-कॉम्पलैक्स, विटामिन के) को बनाने की क्षमता होती है तथा विटामिन सी शरीर के अंगों द्वारा बनाया जाता है। पशुओं को केवल वसा घुलनशील विटामिन ए, डी व ई को चारे के रूप में देने की आवश्यकता होती है।
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भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भैंस की मुख्य भूमिका है। इसका प्रयोग दुग्ध व मांस उत्पादन एवं खेती के कार्यों में होता है। आमतौर पर भैंस विश्व के ऐसे क्षेत्रों में पायी जाती है जहां खेती से प्राप्त चारे एवं चरागाह सीमित मात्रा में हैं। इसी कारण भैंसों की खिलार्इ-पिलार्इ में चारों के साथ कुछ हरे चारे, कृषि उपोत्पाद, भूसा, खल आदि का प्रयोग होता है। गाय की अपेक्षा भैंस ऐसे भोजन का उपयोग करने में अधिक सक्षम है जिनमें रेशे की मात्रा अधिक होती है। इसके अतिरिक्त भैंस गायों की अपेक्षा वसा, कैल्शियम, फास्फोरस एवं अप्रोटीन नाइट्रोजन को भी उपयोग करने में अधिक सक्षम है। जब भैंस को चारों पर रखा जाता है। तो वह इतना भोजन ग्रहण नहीं कर पाती जिससे उसके अनुरक्षण बढ़वार, जनन, उत्पाद एवं कार्यों की आवष्यकताओं की पूर्ति हो सके। इसी कारण से भैंसों में आशातीत बढ़वार नहीं हो पाती और उनके पहली बार ब्याने की उम्र 3.5 से 4 वर तक आती है। अगर भैंसों की भली प्रकार देखभाल व खिलार्इ-पिलार्इ की जाये और आवष्यक पोशक तत्व उपलब्ध करवाये जायें तो इनकी पहली बार ब्याने की उम्र को तीन साल से कम किया जा सकता है और उत्पादन में भी बढ़ोतरी हो सकती है।