'निरभै भया कबीर दिवाना' पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
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कबीर के दोहों की इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि कबीर जी ने एक ही परम तात्विकता की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे इन उदाहरणों से करते हैं। कबीर कहना चाहते हैं कि अब वह निर्भय हो गए हैं और उन्हें अब किसी भी चीज का कोई डर नहीं सताता हैं । कबीर के अनुसार जो व्यक्ति निर्भय हो जाता है, और ईश्वर का दीवाना और भक्त हो जाता है, उसे कोई डर भी नहीं सताता हैं । जिस कारण ऐसे मनुष्यों को इस संसार का कोई माया जाल अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाता । ऐसा इसलिए क्योंकि उन लोगो ने ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब वह ईश्वर के दीवाने हो गए हैं।
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