नीरसाः शब्द से संस्कृत में वाक्य बनाओ
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ज्वलतामतिदूरेऽपि सरसा अपि नीरसाः ।
ज्वलतामतिदूरेऽपि सरसा अपि नीरसाः ।स्त्रियो हि नरकाग्नीनामिन्धनं चारु दारुणम्॥
ये दूरस्थ प्रज्वलित नरकाग्नियों की तरह अशोभनीय एवं दुःखदायी ईंधनस्वरूपा हैं। ये रसयुक्त प्रतीत होने पर भी वस्तुतः रसहीन हैं। काम नामक किरात ने पुरुष रूपी मृगों को आबद्ध कर लेने के लिए स्त्री रूपी पाश को विस्तृत कर रखा है। ये पुरुष जीवनरूपी तलैया के मत्स्य हैं, जो चित्तरूपी कीचड़ में सतत विचरते रहते हैं। इन मास्यरूपी पुरुषों को अपने बाहुपाश में फँसाने के लिए नारी दुर्वासना रूपी रस्सरी में बँधी पिण्डिका अर्थात् चारे की भाँति है। यह नारी समस्त दोषरूपी रत्नों को प्रकट करने वाले सागर की भाँति है। यह दु:खों की जंजीर सदैव हमसे दूर रहे। जिस पुरुष के पास नारी है, उसे भोग की इच्छा प्रादुर्भूत होती है और जिसके पास नारी नहीं है, उसके लिए भोग का कोई कारण ही नहीं है। जिसने स्त्री का परित्याग कर दिया, उसका संसार छूट गया और वास्तव में इस नश्वर जगत् का परित्याग करके ही मनुष्य सुख को प्राप्त कर सकता है, वही सचमुच सुखी हो सकता है ॥