नास्ता कर गजाधर बाबू में चले गए। घर छोटा था और उसमें ऐसी
व्यवस्था हो चुकी थी जिसमें गजाधर बाबू के रहने के लिए कोई स्थान न बचा था
जैसे किसी मेहमान के लिए कुछ अस्थायी प्रबंध कर दिया जाता है, उसी प्रकार बैठक
में कुरसियों को दीवार से सटा कर, बीच में गजाधर बाबू के लिए एक पतली-सी
चारपाई डाल दी गई। गजाधर बाबू उस कमरे में पड़े-पड़े, कभी अनायास ही, इस
अस्थायित्व का अनुभव करने लगते। उन्हें याद हो आतीं वे रेलगाड़ियाँ, जो आतीं और कारक
कुछ देर रुक कर किसी और लक्ष्य की ओर चली जातीं। उनकी पत्नी के पास एक
छोटा-सा कमरा अवश्य था, जिसका एक कोना अचारों के मर्तबान टाल
दिखते
एनजी
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