निस्तलिखित काल्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए। (5)
जिंदगी वही तक नहीं, ध्वजा जिस जगह विगत युग ने गाड़ी,
मालूम किसी को नहीं, अनागत नर की दुविधाएँ सारी ।
सारा जीवन जप चुका', कहे जो वह दासता प्रचारक है ।
भर के शिक्षक का शत्रु, नर की मेधा का संहारक है।
जो कहे, सोच मत स्वयं, बात जो कहूँ, मानता चल उसको,
नर की स्वतंत्रता की मणि का तू कह अराति प्रबल उसको |
1. मनुष्य अपने जीवन की सीमा कहाँ तक मानता है ?
2. दासता का प्रचारक कौन है?
3. स्वतंत्रता की मणि का शत्रु किसे कहा गया है ?
4. नर की मेधा का संहारक इस वाक्य का अर्थ लिखिए |
5. बुद्धि और गुलामी के समानार्थक शब्द काव्यांश से चुनकर लिखिए |
Answers
1. मनुष्य अपने जीवन की सीमा कहाँ तक मानता है ?
► मनुष्य अपने जीवन की सीमा अंतहीन मानता है, जिसने जीवन को सीमित मान लिया वो आगे नही बढ़ सकता।
2. दासता का प्रचारक कौन है?
► दासता का प्रचारक वो है, जो ये कहे कि वह पूरे जीवन को समझ और जी गया जो संपूर्ण को पा गया और उससे आगे कुछ है। जिसने ये मान लिया वो विकास की क्रिया को बाधित करता है, और दासता अर्थात जड़ता को बढ़ाने वाला है।
3. स्वतंत्रता की मणि का शत्रु किसे कहा गया है ?
►स्वतंत्रता की मणि का शत्रु वो है जो परिश्रम नही करता है, जो शोषण करता है।
4. नर की मेधा का संहारक इस वाक्य का अर्थ लिखिए |
► नर की मेधा का संहारक वाक्य का अर्थ है, मनुष्य की बुद्धि को हर लेने वाला यानि नष्ट कर देने वाला अर्थात मरिभ्रम उत्पन्न कर देना।
5. बुद्धि और गुलामी के समानार्थक शब्द काव्यांश से चुनकर लिखिए |
► क्वाव्यांश में बुद्धि और गुलामी के समानार्थी शब्द हैं...
बुद्धि = मेधा
गुलामी = दासता
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