निसंदेह सहजता से हर एक दिन भिन्न-भिन्न भूमिकाएँ जीते हुए, महिलाएँ किसी भी समाज का स्तम्भ हैं। लेकिन आज भी दुनिया के कई हिस्सों में समाज उनकी भूमिका को नज़रअंदाज़ करता है। इसके चलते महिलाओं को बड़े पैमाने पर असमानता, उत्पीड़न, वित्तीय निर्भरता और अन्य सामाजिक बुराइयों का खामियाजा सहन करना पड़ता है। भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के बहुत से कारण सामने आते हैं। प्राचीन काल की अपेक्षा मध्य काल में भारतीय महिलाओं के सम्मान स्तर में काफी कमी आयी। जितना सम्मान उन्हें प्राचीन काल में दिया जाता था, मध्य काल में वह सम्मान घटने लगा था।
आधुनिक युग में कई भारतीय महिलाएँ कई सारे महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पर्दों पर पदस्थ हैं, फिर भी सामान्य ग्रामीण महिलाएँ आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य हैं और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण महिलाएँ सदियों से घर तथा खेतों में पुरुषों के बराबर ही काम करती आई हैं, लेकिन वहाँ उन्हें सामंती सोच के कारण दूसरे दर्जे का नागरिक ही माना जाता रहा है। अब ग्रामीण समाज की सोच बदलने का वक्त आ गया है। सामाजिक असमानता, पारिवारिक हिंसा, अत्याचार और आर्थिक अनिर्भरता इन सभी से महिलाओं को छूटकारा पाना है तो जरुरत है महिला सशक्तिकरण की। महिला सशक्तिकरण से महिलाएँ आत्मनिर्भर और शक्तिशाली बनती हैं। जिससे वे अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती हैं और परिवार और समाज में अपना स्थान बनाती हैं। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण है। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक क्षेत्रों में बराबर का भागीदार बनाया जाए। भारतीय महिलाओं का सशक्तिकरण बहुत हद तक भौगोलिक (शहरी और ग्रामीण). शैक्षणिक योग्यता, और सामाजिक एकता के ऊपर निर्भर करता है ।
महिला सशक्तिकरण से महिलाएँ केवल आर्थिक रूप से सुदृढ़ ही नहीं हुई हैं, अपितु परिवार और समाज की सोच में भी सकारात्मक परिवर्तन दिखाई देने लगे हैं। वर्तमान समय में लोग बेटियों को बोझ समझकर दुनिया में आने से पहले ही मारें नहीं, इसलिए विकास की मुख्यधारा में महिलाओं को लाने के लिये भारत सरकार के द्वारा कई योजनाएं चलाई गई हैं।
अब लोग बेटियों को बोझ नहीं समझते, यह समाज की किस सोच का परिणाम है ?
(क) पुरातन |
(ख) सकारात्मक |
(ग) नकारात्मक |
(घ) संकीर्ण ।
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अब लोग बेटियों को बोझ नहीं समझते, यह समाज की किस सोच का परिणाम है ?
(क) पुरातन |
(ख) सकारात्मक |
(ग) नकारात्मक |
(घ) संकीर्ण ।
इसका सही जवाब है :
(ख) सकारात्मक |
व्याख्या :
अब लोग बेटियों को बोझ नहीं समझते, यह समाज की सकारात्मक सोच का परिणाम है | आज के समय में लोगों की सोच बदलने लगी है , वह अपने बेटियों को शिक्षा देना चाहते है | वह उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहते है | अब लोग अपनी बेटियों को किसी का गुलाम नहीं बनना देना चाहते | महिलाएँ किसी भी समाज का स्तम्भ होती है। हम सबको अपनी सोच बदलने की जरूरत है |
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