न से देखा तो
कबूतर
मूर्ति कपड़े नहीं ब
तीसरी बार फिर -
हालदार साहब की
ना
और मूर्ति को ध
पूछ लिया, क्यों
ता
है?
एक ठो नगरपालिका भी थी। नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी फेमवाला गोल चश्म
दा आपन एयरस
कोई सड़क पक्की करवा दी, कभी कुछ पेशाबघर बनवा दिए,
प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार 'शहर' के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे ।
बनवा दी तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया। इसी नगरपालिका के किसी उत्सानी
सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी। यह कहानी उसी प्रति
नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुन ।
"पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारी की।
के कारण काफ़ी समय ऊहापोह और चिट्ठी-पत्री में बरबाद हुआ होगा
शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देन है।
लीजिए मोतीलाल जी-को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने-भर में मां चश्मा चेंज क
जैसा कि कहा जा चुका है, मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के कोई गिराक
क कोई दो फुट ऊँची। जिसे कहते हैं बस्ट। और सुंदर थी। नेताजी सुंदर ला। उसको मूर्तिक
में है, बल्कि उसके भी एक छोटे-से हिस्से के बारे में।
किया गया होगा, और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते
पटक देने' का विश्वास दिला रहे थे। )
छ-कछ मासम और कमसिन। फौजी वर्दी
पानवाले के खुद
दिमी था। हालदार
रकी। पीछे घूमव
औ
खाकर बोला, कै
ड्राइंग
-
क्या करता है
क्या मतलब?
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ha bhai please please please please parsan and girl
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ha bhai yeh message was automatically generated by please Dil ki
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