निस्वार्थ सेवाभाव व सर्वधर्म समभाव के बारे में अपने शब्दों में लिखिए।
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✠ जीवन मूल्यों में संस्कारों का बड़ा महत्व है। ऐसा ही एक संस्कार है सेवा का भाव। नि: स्वार्थ भाव से यथासंभव जरूरतमंद की मदद करना, सेवा करना हमारे संस्कारों की पहचान कराता है। तन, मन और वचन से दूसरे की सेवा में तत्पर रहना स्वयं इतना बड़ा साधन है कि उसके रहते किसी अन्य साधन की आवश्यकता ही नहीं रहती। क्योंकि जो व्यक्ति सेवा में सच्चे मन से लग जाएगा उसको वह सब कुछ स्वत: ही प्राप्य होगा जिसकी वह आकांक्षा रखता है।
जिन बच्चों में प्रारम्भ से सेवा की भावना का स्वस्थ विकास कर दिया जाता है वे आगे चलकर अपने सेवा-भाव से समाज में प्रतिष्ठा के पात्र बन जाते हैं। वास्तव में समाज के सुंदर निर्माण और भविष्य में उन्नति के लिए बच्चे में सेवा-भाव का विकास करना अत्यंत आवश्यक है। इस सेवा-भाव को विकसित करने के लिए परिवार सबसे सुन्दर संस्था है। अभिभावकों का दायित्व है कि वह स्वयं बच्चों के सामने अपने आचरण से ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें जिसे देखकर बच्चों में सेवा भाव का संस्कार पैदा हो।
सामान्य सेवा कार्यों को भी व्यक्ति यदि जीवन-पर्यन्त करता रहे तो उसका अहं भाव पूर्णत: समाप्त होकर उसके लिए आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर देगा। सेवा करने वाले के रूप में समाज में उत्तम परम्पराओं की स्थापना होती है। एक-दूसरे के प्रति प्रेमभाव से सामाजिक एकता, शान्ति और भाईचारे का आधार बनता है। सेवा कार्यो से उत्तम जीवन मूल्यों की स्थापना होती है।
इतिहास में एक नहीं हजारों ऐसे उदाहरण हैं कि साधारण से साधारण व्यक्ति सामान्य सेवा मार्ग से चलते हुए राष्ट्रों के महान नेता हुए हैं। किंतु यह होता तब ही है जब किसी का सेवा -भाव नि:स्वार्थता की चरम सीमा पर होता है। जरूरी यह है कि बच्चों में सेवा-भाव के विकास के साथ-साथ नि:स्वार्थ भावना का संस्कार भी रोपा जाए। नि:स्वार्थ सेवा करने से दिनों-दिन उसके प्रति उत्साह की वृद्धि होती है। वास्तव में सेवा भाव से ही राष्ट्रोन्नति संभव है, लेकिन जब मानव सेवा सच्ची स्वार्थ रहित,निष्ठा, विश्वास एवं लगनपूर्ण ढंग से हो।
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