नेताजी का चश्मा कहानी का उदेशय
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नेताजी का चश्मा कहानी में लेखक
बताते हैं कि एक कस्बे के मुख्य चौराहे पर नेताजी की एक संगमरमर की मूर्ति थी।
लेकिन उस पर संगमरमर का चश्मा नहीं था। हालदार साहब हर पन्द्रहवें दिन उस कस्बे से
गुजरते थे। वे देखते थे कि हर बार नेताजी की आँखों पर एक नया चश्मा लगा होता था।
जब उन्होंने पान वाले से पूछा तो उसने उन्हें बताया कि कैप्टन नाम का एक बूढ़ा,
लंगड़ा आदमी चश्मे बेचता था। वही उनकी मूर्ति को बदल बदल कर चश्मा पहनाता था। एक
बार जब वे आये तो उन्होंने देखा कि नेताजी का चश्मा नहीं था। पूछने पर उन्हें पता
चला कि कैप्टन की मृत्यु हो गयी थी। अगली बार जब वे आये उन्होंने देखा कि उनके चेहरे
पर एक सरकंडे से बना चश्मा था। यह देखकर वे बहुत दुखी हुए।
इस कहानी के माध्यम से
स्वयं प्रकाश जी यह बताना चाहते हैं कि सभी नागरिकों में देश भक्ति की भावना होनी
चाहिए। हर व्यक्ति चाहें वह बड़ा हो या छोटा, अपने देश और समाज के लिए कुछ न कुछ कर
सकता है। कैप्टन एक सामान्य और साधारण आदमी था। लेकिन उसमें भी देश भक्ति की भावना
थी। वह अपनी क्षमता के अनुसार अपनी इस भावना को व्यक्त करता था।