Hindi, asked by mamatakhandelwal8, 2 months ago

नेताजी का चश्मा पाठ के आधार पर लिखिए हालदार साहब और पान वाले की कौन सी बात अनुचित लगी​

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Answered by drishtisingh156
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हालदार साहब को पानवाले के द्वारा चश्मे बेचने वाले कैप्टन को 'लँगड़ा' कहना अच्छा नहीं लगा क्योंकि कैप्टन सहानुभूति एवं सम्मान का पात्र था।

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Answered by jaiswalsaksham842
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Answer:

here is your answer

Explanation:

प्रश्न 1.

जिस किसी ने नेताजी की मूर्ति की आँखों पर सरकडे से बना चश्मा लगाया होगा, उसे आप किस तरह का व्यक्ति मानते हैं और क्यों?

उत्तर:

जिस किसी ने भी नेताजी की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना चश्मा लगाया होगा, वह देश से एवं देश के महान नेताओं से अत्यंत प्रेम करने वाला व्यक्ति होगा। उसमें देशभक्ति की भावना प्रबल रूप से व्याप्त होगी और वह देश के प्रति अपने उत्तरदायित्वों से अच्छी तरह परिचित होगा। मैं मानता हूँ कि वह व्यक्ति गंभीर एवं सच्चा देशभक्त होगा, जो देश एवं देश के महान नेताओं के प्रति अत्यंत प्रेम की भावना रखता है। जब उसे नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के अधूरी लगी होगी, तब उसके अंदर देशप्रेम की भावना उत्पन्न हुई होगी। वह बार-बार चश्मा बदलने की आर्थिक स्थिति में भी नहीं होगा। अतः उसने कम लागत वाली सरकंडे का चश्मा लगनपूर्वक बनाकर नेताजी की मूर्ति को पहनाया होगा और उनके व्यक्तित्व के अधूरेपन को समाप्त कर दिया होगा। अधिक संभावना यह है कि ऐसा किसी बच्चे ने किया होगा। हम अपनी ऐसी भावी पीढ़ी पर गर्व कर सकते हैं।

प्रश्न 2.

मूर्तिकार के द्वारा 'बनाकर पटक देने' के पीछे क्या भाव निहित है?

उत्तर:

मूर्तिकार द्वारा मूर्ति बनाकर पटक देने का भाव यह है कि मूर्ति में सूक्ष्म बारीकियों का ध्यान अधिक नहीं रखा गया था। उसे देखने से लगता है कि इस मूर्ति को बनानेवाला कलाकार बहुत उच्च दर्जे का नहीं था और इसे बनाने के लिए उसे पर्याप्त समय भी नहीं मिला होगा। बहुत जल्दबाजी में उसे काम पूरा करने के लिए पर्याप्त राशि भी नहीं मिली होगी। किसी स्थानीय कलाकार ने ही उसे कम समय में तैयार करने का विश्वास दिलाया होगा। कम पूँजी एवं कम समय के कारण तथा उत्कृष्ट कलाकारिता के अभाव में बिना सूक्ष्म तथ्यों का ध्यान रखें, किसी तरह मूर्ति बनाकर वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गया। ‘मूर्ति बनाकार पटक देने के पीछे यही भाव निहित है।

प्रश्न 3.

यह क्यों कहा गया कि महत्त्व मूर्ति के रंग-रूप या कद का नहीं, उस भावना का है? पाठ 'नेताजी का चश्मा' के आधार पर बताओ।. 2015

उत्तर:

‘महत्व मूर्ति के रंग-रूप या कद का नहीं, उस भावना का है, जिस भावना से मूर्ति का निर्माण हुआ था। ‘नेताजी का चश्मा' पाठ में शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र की मूर्ति लगाई गई थी। मूर्ति संगमरमर की थी। दो फुट ऊँची, फ़ौजी वर्दी में नेताजी सुंदर लग रहे थे। मूर्ति को देखते ही 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो... याद आने लगते थे । वास्तव में यह नगरपालिका द्वारा सफल एवं सराहनीय प्रयास था। इस मूर्ति में एक ही कमी थी। नेताजी का चश्मा नहीं बनाया गया था। रियल चश्मा पहनाकर कैप्टन ने इस कमी को भी पूरा कर दिया था। वास्तव में महत्त्व मूर्ति के कद या रंग रूप का नहीं था, उसके पीछे छिपी भावना का था इस मूर्ति के माध्यम से लोगों में देश प्रेम और देशभक्ति की भावना पैदा हो रही थी तथा नेताओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान जागृत हो रहा था, वह सबसे अमूल्य एवं महत्त्वपूर्ण था।

प्रश्न 4.

अपने दैनिक कार्यों में किसी-न-किसी रूप में हम भी देश-प्रेम की भावना को किस प्रकार प्रकट कर सकते हैं? 2014

उत्तर:

देश-प्रेम प्रकट करने के लिए बड़े-बड़े नारों की आवश्यकता नहीं होती और न ही जवान, बलिष्ठ या सैनिक होने की जरूरत होती है। देश-प्रेम और देश-भक्ति हुदय का भाव है, जिसे हम दैनिक कार्यों व छोटी-छोटी बातों से प्रकट कर सकते हैं। अपने आस-पास के लोगों के साथ प्रेम से रहना, सौहार्द की भावना परस्पर सहयोग स्थापित करना, अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ एवं शांतिपूर्ण बनाए रखना। इन सबके द्वारा देश-प्रेम के भाव को स्थापित कर सकते हैं।

प्रश्न 5.

हालदार साहब को पानवाले की कौन सी बात अच्छी नहीं लगी और क्यों ?

उत्तर:

हालदार साहब को पानवाले के द्वारा चश्मे बेचने वाले कैप्टन को 'लँगड़ा' कहना अच्छा नहीं लगा क्योंकि कैप्टन सहानुभूति एवं सम्मान का पात्र था। वह अपनी छोटी-सी फेरी वाली दुकान से देशभक्त सुभाष चंद्र की मूर्ति पर चश्मा लगाकर उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करता था। वह शारीरिक रूप से अपंग होते हुए भी देशभक्ति की भावना रखता था।

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