नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की 125 वीं जयंती मनाई जाएगी निबंध लेखन प्रतियोगिता
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हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती अथवा सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन बड़े उत्साह के संग मनाया जाएगा। वर्ष 2022 में, सुभाष चंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी, रविवार के दिन मनाई जाएगी। इस वर्ष नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जन्म की 125वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी।
सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय / सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी -
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897, बंगाल प्रान्त के उड़ीसा प्रभाग के कटक शहर में हुआ था। इनकी माता का नाम पार्वती देवी और पिता का नाम जानकी नाथ बोस था। इनके पिता पेशे से वकील थे। जनवरी 1902 में सुभाष चन्द्र बोस ने प्रोटोस्टेट यूरोपियन स्कूल में प्रवेश लिया। इसके बाद इन्होंने रेनवेंशा कॉलिजियेट स्कूल और फिर प्रेसिडेंसी कॉलेज में वर्ष 1913 में मैट्रिक की परीक्षा में द्वितीय श्रेणी प्राप्त करने के बाद प्रवेश लिया। इनका राष्ट्रवादी चरित्र इनकी पढ़ाई के बीच में आ गया जिसके कारण इन्हें स्कूल से निष्काषित कर दिया गया। इसके बाद इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज (कलकत्ता यूनिवर्सिटी) में दर्शन शास्त्र से बी.ए. पूरी करने के लिये वर्ष 1918 में प्रवेश लिया। वर्ष 1919 में ये इंग्लैंड के फिट्ज़विलियम कॉलेज, कैम्ब्रिज स्कूल में सिविल की परीक्षा में शामिल होने के लिए गये। तत्पश्चात सिविल परीक्षा में चौथा स्थान की प्राप्ति के साथ चुन लिये गये लेकिन इन्होंने ब्रिटिश सरकार के अधीन रहकर कार्य करने से मना कर दिया। अंत में सिविल की नौकरी से इस्तीफा (त्यागपत्र) दे दिया और भारत आ गये जहाँ इन्होंने बंगाल प्रान्त की कांग्रेस समिति के प्रमोशन के लिये स्वराज्य समाचार पत्र का प्रकाशन शुरु किया। 1937 में, इन्होंने आस्ट्रिया में एमिली शेंकल (जो आस्ट्रिया के पशु चिकित्सक की बेटी थी) से शादी कर ली। वर्ष 1920-1930 के बीच में ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे और वर्ष 1938-39 में इसके अध्यक्ष चुने गये थे। वो अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के साथ-साथ बंगाल राज्य की कांग्रेस के सचिव के रुप में भी चुने गये थे। वो फॉर्वड समाचार पत्र के सम्पादक बन गये और कलकत्ता के नगर निगम के सी.ई.ओ. के रुप में कार्य किया। वर्ष 1927 में जेल से रिहा होने के बाद में इन्हें कांग्रेस महासचिव के रुप में चुना गया। इन्हें वर्ष 1939 में कांग्रेस से निकाल दिया गया और ब्रिटिश सरकार के द्वारा घर में ही नजर बंद कर दिये गये। फिर वो भारत को ब्रिटिश शासन से आजाद कराने में सहयोंग लेने के लिये जर्मनी और जापान गये। अंत में 22 जून 1939 को अपने राजनीतिक जीवन को फॉर्वड ब्लॉक से संयोजित कर लिया। मुथुरलिंगम थेवर इनके बहुत बड़े राजनीतिक समर्थक थे इन्होंने मुंबई में 6 सितम्बर को सुभाष चन्द्र बोस के मुंबई पहुँचने पर एक बहुत विशाल रैली का आयोजन किया था। वर्ष 1941 से लेकर वर्ष 1943 तक, ये बर्लिन में रहे। इन्होंने "तुम मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आजादी दूंगा!" जैसे अपने प्रख्यात नारे के माध्यम से आजाद हिंद फौज का नेतृत्व किया। 6 जुलाई 1944 में इन्होंने अपने भाषण में महात्मा गाँधी को “राष्ट्रपिता” कहा था जिसका प्रसारण सिंगापुर आजाद हिन्द फौज के द्वारा किया गया था। उनका एक और प्रसिद्ध नारा "दिल्ली चलो" आई.एन.ए. की सेनाओं को प्रोत्साहित करने के लिए था। आमतौर पर उनके द्वारा प्रयोग किया जाने वाला एक और नारा "जय हिंद", "भारत की जय हो!" था जिसे बाद में भारत सरकार और भारतीय सेनाओं ने अंगीकृत (धारण) कर लिया था। कुछ समय बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को केवल 48 साल की आयु में ताइवन के निकट एक विमान दुर्घटना में हो गई।