नैतिक मूल्यों के उत्थान में शिक्षा की भूमिका
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नैतिक मूल्यों के उत्थान में शिक्षा की भूमिका
शिक्षा व्यक्ति के चरित्र-विकास की आधारशिला होती है। शिक्षा मनुष्य के विकास एवं उसके चरित्र निर्माण के लिए उसके अंदर ज्ञान भरने तथा उसे समर्थ व योग्य बनाने की प्रक्रिया है। व्यक्ति को जैसी शिक्षा मिलती जाती है उसके विचार भी वैसे बनते जाते हैं, जैसी उसे शिक्षा मिली है। शिक्षा मनुष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। शिक्षा मनुष्य के गुणों के विकसित कर उन्हे बाहर लाती है। नैतिक मूल्यों के उत्थान में शिक्षा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, बल्कि कह सकते हैं कि व्यक्ति के नैतिक मूल्य उसे मिली गयी शिक्षा से ही निर्धारित होते हैं। कोई भी व्यक्ति साधु-संत भी बनता है, समाजसेवी भी बनता है, चोर-डाकू भी बनता है। ये सब उसे मिलने वाली शिक्षा के कारण ही होता है कि वो क्या बनता है। किसी व्यक्ति के साधु, सज्जन या धर्मात्मा बनने में उसकी शिक्षा का ही योगदान होता है। उसे निरंतर ऐसी शिक्षा मिली होगी कि वो कुछ गलत सोच नही नही पाया और अच्छाई के पथ पर ही चलता रहा। जबकि कोई यदि चोर-डाकू आदि बनता है तो जरूर उसकी शिक्षा में कोई कमी रही होगी या उसे शिक्षा मिली ही नही होगी और उसका मन गलत प्रवृत्तियों की ओर मुड़ गया।
अतः किसी व्यक्ति को यदि चरित्रवान बनाना है, उसके अंदर नैतिक मूल्यों को विकसित करना है तो उसे अच्छी शिक्षा देनी आवश्यक है। शिक्षा ही उसके अंदर नैतिक मूल्यों को विकसित कर सकती है। नैतिक मूल्यों के उत्थान में शिक्षा की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है।