Hindi, asked by jainanand83789, 8 months ago

नैतिक मूल्य के उत्थान में शिक्षक की भूमिका विषय पर एक अनुच्छेद लिखिए 200 wword's plzzzzzzzz

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Answered by ashish6461
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Explanation:

शिक्षा मनुष्य के सम्यक् विकास के लिए उसके विभिन्न ज्ञान तंतुओ को प्रशिक्षित करने की प्रक्रिया है। इसके द्वारा लोगों में आत्मसात करने, ग्रहण करने, रचनात्मक कार्य करने, दूसरों की सहायता करने और राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रमों में पूर्ण सहयोग देने की भावना का विकास होता है। इसका उद्देश्य व्यक्ति को परिपक्व बनाना है ।

नीति शास्त्र की उक्ति है-‘‘ज्ञानेन हीनाः पशुभिः समानाः।” अर्थात् ज्ञान से हीन मनुष्य पशु के तुल्य है। ज्ञान की प्राप्ति शिक्षा या विद्या से होती है। दोनों शब्द पर्यायवाची हैं। ‘शिक्ष’ धातु से शिक्षा शब्द बना है, जिसका अर्थ है-विद्या ग्रहण करना। विद्या शब्द ‘विद’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है-ज्ञान पाना। ऋषियों की दृष्टि में विद्या वही है जो हमें अज्ञान के बंधन से मुक्त कर दे-‘सा विद्या सा विमुक्तये’। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में ‘अध्यात्म विद्यानाम्’ कहकर इसी सिद्धांत का समर्थन किया है।

शिक्षा की प्रक्रिया युग सापेक्ष होती है। युग की गति और उसके नए-नए परिवर्तनों के आधार पर प्रत्येक युग में शिक्षा की परिभाषा और उद्देश्य के साथ ही उसका स्वरूप भी बदल जाता है। यह मानव इतिहास की सच्चाई है। मानव के विकास के लिए खुलते नित-नये आयाम शिक्षा और शिक्षाविदों के लिए चुनौती का कार्य करते है जिसके अनुरूप ही शिक्षा की नयी परिवर्तित-परिवर्धित रूप-रेखा की आवश्यकता होती है। शिक्षा की एक बहुत बड़ी भूमिका यह भी है कि वह अपनी संस्कृति, धर्म तथा अपने इतिहास को अक्षुण्ण बनाए रखें, जिससे की राष्ट्र का गौरवशाली अतीत भावी पीढ़ी के समक्ष द्योतित हो सके और युवा पीढ़ी अपने अतीत से कटकर न रह जाए। 1

वर्तमान समय में शिक्षक को चाहिए कि सामाजिक परिवर्तन को देखते हुए उच्च शिक्षा में गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए केवल अक्षर एवं पुस्तक ज्ञान का माध्यम न बनाकर शिक्षित को केवल भौतिक उत्पादन-वितरण का साधन न बनाया जाए अपितु नैतिक मूल्यों से अनुप्राणित कर आत्मसंयम, इंद्रियनिग्रह, प्रलोभनोपेक्षा, तथा नैतिक मूल्यों का केंद्र बनाकर भारतीय समाज, अंतरराष्ट्रीय जगत की सुख-शान्ति और समृध्दि को माध्यम तथा साधन बनाया जाय। ऐसी शिक्षा निश्चित ही ‘स्वर्ग लोके च कामधुग् भवति।’ कामधेनु बनकर सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली और सुख-समृध्दि तथा शा़िन्त का संचार करने वाली होगी।2

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