.ना तो कौनों क्रिया करम में ,नाहिं जोग बैराग में |इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए |
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ना तो कौनों क्रिया करम में, नाहिं जोग बैराग में। इस पंक्ति का आशय इस प्रकार है...
भावार्थ : कबीर के अनुसार ईश्वर कहते हैं कि ए मानव तू मुझको कहां ढूंढता है। किसी भी क्रिया-कर्म यानि आडंबर में नही हूँ। ना ही मैं योग-सन्यास में हूँ। मुझे पाना है तो मुझे अपने अंदर ही ढूंढ।
अर्थात कबीर व्यर्थ के नंबरों पर कुठाराघात करते हुए कहते हैं कि ईश्वर को पाने के लिए आडंबरों का पालन और तीर्थ स्थान में भटकने या योग-सन्यास लेने की जरूरत नही है। ईश्वर तो अपने अंदर ही है, बस उसको पहचानने की आवश्यकता है।
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