नैतिक सविंधन पर भाषण
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नैतिकता का हमारे जीवन में बहुत बडा स्थान है । जगह जगह पर यह सुननें और देखनें को मिल जाता है कि अब नैतिकता बची ही कहां है। किंतु यह क्या ऐसा वास्त्विक में हैॽ बिना नैतिकता के घर, परिवार, गांव, कस्वा, शहर, यहां तक कि देश की अवधारणा भी नहीं की जा सकती है ।यह नैतिकता क्या है। हमें इस पर विचार करना है ।
नैतिकता मूलरूप से नीति से उत्पन्न हुई है ।नीति से नीतिक और इसी का अपभ्रनश नैतिक है । नीति से उत्पन्न भाव नैतिकता कहलाते हैं । नीति एक तरह की विचारधारा है जिसके अंतर्गत हमारे समाजिक ढांचे को मजबूत किया गया है ।
मनुष्य का विकास क्रमिक है । पहिले वह जंगलों में रहता था । सामाजिक विकास न के बराबर था । एक छोटा सा कुनबा या कबीला होता था किंतु उनमें भी नैतिकता रहती थी । उस कुनबे में कोई न कोई नियम कायदे कानून होते ह्ते । उनमें भी नैतिकता रहती थी । मनुष्य के विकास के साथ-साथ उनका सामाजिक दायरा बढा, सोंच बढी जिसके साथ-साथ नैतिकता भी बढी । आदिकाल से लेकर मध्यकाल तक नैतिकता सामाजिक विकास के अनुपातिक क्रम मे बढी । जैसे जैसे मनुष्य ने अर्वाचीन काल में प्रवेश किया उसी समय से नैतिकता में गिरावत आना शुरू हो गई ।
नैतिकता का छेत्र विस्त्रत है । इसके अंदर वे सभी नियम कानून आ जाते हैं जो किसी भी संथा को चलाने के लिये आदर्श माने जाते हैं । उपर्युक्त वाक्य मे आदर्श विशेषण के रूप मे प्रयोग किया गया है । यद्यपि विना नैतिकता के भी संथायें चल सकती हैं किंतु वे आदर्श संथाओं का स्थान नहीं ले सकती हैं । उदाहरण के तौर पर हम परिवार नामक संथा को देखते हैं ।समाजशास्त्र के मनीशियों ने एक छत के नीचे रहने वाले मां-बाप .पति- पत्नी व बच्चों को परिवार माना है । इस परिवार नामक संथा मे पिता को कर्ता माना गया है । इसके लिये कुछ नियम बनें हैं । परिवार का कर्ता धन उपार्जित करेगा । घर में ग्रहणी घर का काम काज करेगी । घर के आंतरिक कार्यों की जवाबदेही ग्रहणी की और घर के वाह्य कार्यों की जवाबदेही कर्ता अर्थात घर के मुखिया की निर्धारित की गई । मां बाप अपनें बच्चों की परवरिश यथाशक्ति करते हैं और जब मां बाप बूढे. हो जाते हैं तब उनकी सेवा बच्चे करते हैं । परिवार का हर सदस्य एक दूसरे की भावनाअओं का सम्मान करता है । उपरुक्त यही नियम पारिवारिक नैतिकता की श्रेणी में आते हैं।
इसी तरह किसी भी छेत्र के लिए चाहे वह सामाजिक,राजनीतिक या आर्थिक हो ,कुछ न कुछ नियम जरूर होते हैं और इन नियमों का अनुपालन नैतिकता की श्रेणी में आता है । वर्तमान में समाज की सब से छोटी इकाई परिवार में दिन प्रतिदिन नैतिक मूल्यों की कमी आ रही है । यह हम सब के लिये चिंता का विषय है । युवा पीढी को इस पर विशेष ध्यन देना होगा । परिवर में बुजुर्गों का सम्मान घट रहा है ।युवा पीढी उन्हें बोझ समझ रही है ।पारिवारिक कलह दिन प्रतिदिन बढ रहें हैं ।यह सब नैतिकता के पतन का परिणाम है ।
आज हम किसी भी छेत्र की बात करें, नैतिकता का ह्रास दिखाई पड. रहा है । हमनें हर छेत्र मे नियमावली तो बना डाली है किंतु नैतिकता की यह नियमावली किताबों के पन्नों में शुसोभित होकर रह गई है । नैतिकता के ह्रास का मूल कारण भ्रष्टाचार है । जब हम गलत तरीके से ज्यादा की चाहत करने लगते हैं तब भ्रष्टाचार जन्म लेता है जो नैतिकता के पतन का कारण बनता है ।
नैतिकता का हमारे जीवन मूल्यों पर क्या प्रभाव पड.ता है , जानने के पूर्व हम संछेप में जीवन मूल्यों की चर्चा करते हैं । धर्म, अर्थ, काम, मोछ हमारे जीवन के मूल्य हैं और इन सभी से नैतिकता का सीधा सम्बंध है । इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि जीवन के मूल्य नैतिकता के समानुपाती हैं । अर्थात यदि हमारे जीवन मे नैतिकता का समावेश है तो हमारे जीवन के मूल्य धर्म, अर्थ, काम, मोछ सही तरह से निष्पादित होते हैं ।
बिना नैतिकता के हमारा जीवन पशुवत है । आहार और प्रजनन तो जीव मात्र की आवश्यकता है, हम तो मनुष्य हैं । ईश्वर ने हमें सोचने समझने की शकित दी है ।परिणामस्वरूप हमारे मनीषियों, शिछाविदों नें अच्छा जीवन जीने के लिये कुछ नियम बनाये हैं । जिन पर चलना हमारा परम कर्तव्य है और इन कर्तव्यों का पालन ही नैतिकता है जिसके फलस्वरूप हमारा जीवन अम्रतमय बनता है । धर्म, अर्थ, काम, मोछ जीवन के मूल्यों को हम अपने जीवन में सही ढंग से समाहित कर सकते हैं ।बिना नैतिकता के हमारे जीवन मूल्य शून्य हैं ।
आज हमारी संस्क्रति पाश्चात्य एवं भारतीयता का मिला जुला स्वरूप है । देश काल और समाज के हिसाब से हमारी संस्क्रति में भी बद्लाव आया है । शहरीकरण और टूटते संयुक्त परिवारों के लिये तो नैतिकता वरदान है ।चाहे हम घर में हों या बाहर ,खेत खलिहान में हों या दफ्तर में, शासित वर्ग में हों या शासक में, हमें नैतिकता को सर्वोच्च स्थान देना होगा । तभी हम भारत की पुरानी परिकल्पना सोने की चिडिया को साकार कर पायेगें और आनेंवाली पीढी के लिये आदर्श साबित हो सकेंगे ।
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संवैधानिक नैतिकता ’को किसी व्यक्ति की ऐसी नैतिक जिम्मेदारियों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो संवैधानिक मूल्यों के प्रति वफादार हो और उन्हें बिना किसी समझौते के पूरी ईमानदारी के साथ बरकरार रखे।
संवैधानिक नैतिकता को कैसे कायम रखा जाए
गैर-संवैधानिक प्रथाओं की आलोचना करें
किसी भी ऐसी कार्रवाई के खिलाफ बोलना आवश्यक है, जिसे आप संविधान के तहत अवैध या अनैतिक मानते हैं। अधिवेशन के खिलाफ जाकर और एक उच्च नैतिक मानदंड लेकर, आप संवैधानिक मूल्यों के संरक्षक के रूप में कार्य कर सकतें हैं।
उदाहरण : एक लोक सेवक के रूप में आप देखते हैं कि बुनियादी संवैधानिक अधिकारों (स्वतंत्रता, समानता आदि) का उल्लंघन किया जा रहा है और आप परिणाम की परवाह किए बिना बोलने का फैसला करते हैं।
जनता के लिए महत्व का प्रचार
संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए केवल हमारी मान्यताएं और कार्य पर्याप्त नहीं हैं। इन आदर्शों को बनाए रखने के महत्व के बारे में जनता को शिक्षित करना हमारा नैतिक दायित्व है। यह लंबे समय तक हमारे लोकतंत्र के लिए फलदायी होगा।
उदाहरण : स्कूलों में कार्यक्रम आयोजित करना, जहाँ बच्चों को संवैधानिक मूल्यों को अपनाने और उनके दिन-प्रतिदिन के जीवन में अभ्यास करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।आगे का रास्ता
यह देखा गया है कि युवा अधिकारी सेवा से इस्तीफा दे रहे हैं और इससे वे संवैधानिक नैतिकता ’को बनाए रखने का लक्ष्य रखते हैं, जिसका उनके अर्थ में उल्लंघन हो रहा है ।
लेकिन तथ्य यह है कि संवैधानिक नैतिकता ’को सिस्टम के बहार काम करने के बजाए सिस्टम का हिस्सा होने और सिस्टम के अंदर सुधार करने से बरक़रार रखा जा सकता है।
इस प्रकार, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ‘संवैधानिक नैतिकता’ को बनाए रखना वास्तव में हमारे आधिकारिक रूप के साथ-साथ नैतिक कर्तव्य का भी बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे संभव बनाने के लिए समाज के सभी वर्गों के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है।