नीति संबंधी पाँच कवियों के दोहें या कविता
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रहिमन देख बडेंन को लघु न दीजिये डार
जहाँ काम आवे सुई कहा करे तलवार
रहिमन धागा प्रेम का मत तोरो चटकाय
टूटे ते फिर ना जुरे जुरे गाँठ परि जाय
छमा बड़न को चहिये छोटन को उत्पात
कह रहीम हरि का घट्यौ जो भृगु मारी लात
खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीती, मदपान
रहिमन दाबे ना दबे जाने सकल जहान
रात गंवाई सोयकर दिवस गंवाया खाय
हीरा जन्म अमोल था कौड़ी बदले जाय
जहाँ काम आवे सुई कहा करे तलवार
रहिमन धागा प्रेम का मत तोरो चटकाय
टूटे ते फिर ना जुरे जुरे गाँठ परि जाय
छमा बड़न को चहिये छोटन को उत्पात
कह रहीम हरि का घट्यौ जो भृगु मारी लात
खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीती, मदपान
रहिमन दाबे ना दबे जाने सकल जहान
रात गंवाई सोयकर दिवस गंवाया खाय
हीरा जन्म अमोल था कौड़ी बदले जाय
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