नेतृत्व विहीन होता मुस्लिम समाज,
कृत्य किसी का और संकट किसी पर, बुद्धिजीवियों पर हावी होती कट्टरपंथियों की विचारधारा
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जब आज भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व कोविड-19 जैसी महामारी से जूझ रहा है, तब देश में चारों ओर आलोचनाओं का शिकार हो रहे मुस्लिम समाज में नेतृत्व की कमी का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा लग रहा है कि अकबर जैसी महान साम्राज्यवादी शासक ने इस गंगा जमुनी संस्कृति को अपनाते हुए देश को एक अच्छा नेतृत्व प्रदान किया था उसी भारत में मुस्लिम समाज के नेतृत्व में कट्टरपंथियों ने अपनी जगह बना ली है। जिस तरह सभी धर्मो के धर्मगुरुओं के साथ-साथ मुस्लिम धर्म में भी बुद्धिजीवियों का नेतृत्व था और सूफी संत धर्म के साथ इस वर्ग में बेहतर नेतृत्व के साथ साथ इस्लामिक कट्टरपंथता को नहीं पनपने दे रहे थे वहीं अब देश के मुसलमानों को बुद्धिजीवी मौलानाओं का नेतृत्व नहीं मिल रहा है। कोई दौर था जब अंग्रेजों को भारत पर शासन करने के लिए हिंदू मुस्लिम की एकता से कठोर संघर्ष करना पड़ा और अपना शासन जारी रखने के लिए दोनों धर्मों के बीच बड़े स्तर पर फूट डालने का प्रयास किया लेकिन ऐसा हो न सका और आजादी की लड़ाई में हिंदू मुस्लिमों की एकता का संघर्ष जारी रहा। यह दौर देश के आजाद होने के बाद आजादी के लड़ाई के दौरान भी जारी रहा, यहां तक आजादी की लड़ाई लड़ने वाली उस कांग्रेस के सबसे युवा और सबसे अधिक समय तक अध्यक्ष रहने वाले मौलाना अबुल कलाम ने भी सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए देश को दो टुकड़ों में बांटने वाले जिन्ना के फैसले का विरोध किया था। जिन कलाम की वजह से देश में मुस्लिमों को सम्मान मिला वैसे ही अब वक्त बदलने के साथ-साथ सम्मान का अर्थ बदलता जा रहा है। सम्मान का अर्थ अब धर्म को संचालित करने वाले कट्टरपंथियों की जी हजूरी करने में रह गया है या फिर वे लोग सम्मान के हकदार बन गए हैं जो राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए तुष्टीकरण की वकालत करते हैं। लोगों के जहन में उपज रही तमाम आशंकाओं के बीच गंगा जमुनी तहजीब वाली इस संस्कृति में लोगों के मन में घुटन सी हो रही है। हिंदू हो या मुसलमान तथाकथित लोग एक दूसरे पर टीका टिप्पणी करते हुए और राजनीतिक महत्वा के लिए तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मुस्लिम समाज के नेतृत्व में अब कट्टरपंथी लोगों ने अपनी जगह बना ली है जबकि बुद्धिजीवी सूफी संतों को दरकिनार कर दिया गया है। जिसके चलते हैं मुस्लिम समाज के उन लोगों को भी तकलीफ हो रही है जो हिंदू मुस्लिम की एकता के साथ-साथ लोगों की सामाजिक सौहार्द और परिवार में अमन चैन की वकालत करते हैं। यह कहना भी अतार्किक नहीं होगा कि बड़े और छोटे राजनीतिक दल भी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करते हुए उनको असुरक्षित बताकर हाशिए पर ला रहे हैं। मुस्लिम समाज में कोई बुद्धिजीवी अगर सकारात्मक नेतृत्व प्रदान करने के लिए आगे आता है तो राजनीतिक महत्वाकांक्षी वाले लोग उसे पीछे ढकेल देते हैं और कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोग अग्रणी बनकर नेतृत्व संभाल लेते हैं, जिसके चलते दिल्ली के मरकज जमात तब्लीगी का नेतृत्व भी एक ऐसा ही उदाहरण है, जहां मौलाना साद न केवल सवालों के घेरे में हैं बल्कि उनकी हठधर्मिता के चलते एक बड़े मुस्लिम समुदाय को आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है जो इस गिरफ्त में पूरी तरह से निर्दोष थे। बात करें उस फल विक्रेता की जो थूककर फल बेच रहा था, जिसने मानवता को तार तार करते हुए अपनी घिनौनी करतूत से देश के अन्य शहरों और ग्रामीण इलाकों में फल वाले सामान बेचकर जीवन यापन करने वाले लोगों के सामने सामाजिक बहिष्कार की चुनौती खड़ी कर दी है। उन मुस्लिम गरीबों को रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं जो फल या सामान बेच कर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे, उन्हें भी नकारात्मक दृष्टि से देखते हुए उनसे नाम और पहचान पूछी जा रही है। उसके बाद सामान की खरीदारी की जाती है। हालात यहां तक हो चुके हैं कि कई मुसलमान फल विक्रेताओं के फल सुबह से शाम तक नहीं बिक पाते और उन्हें आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। सवाल यह उठ रहा है कि तब्लीगी जमात में किए गए घिनौने कृत्य का नुकसान मुस्लिम समाज के उन गरीबों को क्यों उठाना पड़ रहा है, जिन्होंने कभी दिन में कमाने और रात में खाने के अलावा बाहर की दुनिया को देखा ही नहीं। वक्त बदलने के साथ-साथ लोगों के मनों की भावनाएं बदलती जा रही हैं और संकीर्ण मानसिकता के साथ साथ जो हिंदू मुस्लिम एक दूसरे के घर आते जाते एक दूसरे के साथ खाना खाते रहते थे वे दूरी बनाते नजर आ रहे हैं। यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आने वाले समय में इन दोनों समुदायों के लोगों के बीच बढ़ती हुई दूरियां लंबे अरसे तक सामान्य हो पाएंगी अथवा नहीं। अंततः हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों को एक दूसरे के प्रति सद्भावना के साथ कोरोना वायरस से जंग लड़ने के लिए लॉक डाउन के नियमों का पालन करना होगा और घिनौने कृत्य करने वाले लोगों को माकूल जवाब देना होगा। दोनों समुदाय के लोगों को सामाजिक दृष्टि अपनाकर सौहार्द अपनाना होगा, जिससे उनके और उनके परिवार के साथ साथ धर्म और देश की विजय होगी।
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➡️ नेतृत्व विहीन होता मुस्लिम समाज,
कृत्य किसी का और संकट किसी पर, बुद्धिजीवियों पर हावी होती कट्टरपंथियों की विचारधारा
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जब आज भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व कोविड-19 जैसी महामारी से जूझ रहा है, तब देश में चारों ओर आलोचनाओं का शिकार हो रहे मुस्लिम समाज में नेतृत्व की कमी का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा लग रहा है कि अकबर जैसी महान साम्राज्यवादी शासक ने इस गंगा जमुनी संस्कृति को अपनाते हुए देश को एक अच्छा नेतृत्व प्रदान किया था उसी भारत में मुस्लिम समाज के नेतृत्व में कट्टरपंथियों ने अपनी जगह बना ली है। जिस तरह सभी धर्मो के धर्मगुरुओं के साथ-साथ मुस्लिम धर्म में भी बुद्धिजीवियों का नेतृत्व था और सूफी संत धर्म के साथ इस वर्ग में बेहतर नेतृत्व के साथ साथ इस्लामिक कट्टरपंथता को नहीं पनपने दे रहे थे वहीं अब देश के मुसलमानों को बुद्धिजीवी मौलानाओं का नेतृत्व नहीं मिल रहा है। कोई दौर था जब अंग्रेजों को भारत पर शासन करने के लिए हिंदू मुस्लिम की एकता से कठोर संघर्ष करना पड़ा और अपना शासन जारी रखने के लिए दोनों धर्मों के बीच बड़े स्तर पर फूट डालने का प्रयास किया लेकिन ऐसा हो न सका और आजादी की लड़ाई में हिंदू मुस्लिमों की एकता का संघर्ष जारी रहा। यह दौर देश के आजाद होने के बाद आजादी के लड़ाई के दौरान भी जारी रहा, यहां तक आजादी की लड़ाई लड़ने वाली उस कांग्रेस के सबसे युवा और सबसे अधिक समय तक अध्यक्ष रहने वाले मौलाना अबुल कलाम ने भी सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए देश को दो टुकड़ों में बांटने वाले जिन्ना के फैसले का विरोध किया था। जिन कलाम की वजह से देश में मुस्लिमों को सम्मान मिला वैसे ही अब वक्त बदलने के साथ-साथ सम्मान का अर्थ बदलता जा रहा है। सम्मान का अर्थ अब धर्म को संचालित करने वाले कट्टरपंथियों की जी हजूरी करने में रह गया है या फिर वे लोग सम्मान के हकदार बन गए हैं जो राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए तुष्टीकरण की वकालत करते हैं। लोगों के जहन में उपज रही तमाम आशंकाओं के बीच गंगा जमुनी तहजीब वाली इस संस्कृति में लोगों के मन में घुटन सी हो रही है। हिंदू हो या मुसलमान तथाकथित लोग एक दूसरे पर टीका टिप्पणी करते हुए और राजनीतिक महत्वा के लिए तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मुस्लिम समाज के नेतृत्व में अब कट्टरपंथी लोगों ने अपनी जगह बना ली है जबकि बुद्धिजीवी सूफी संतों को दरकिनार कर दिया गया है। जिसके चलते हैं मुस्लिम समाज के उन लोगों को भी तकलीफ हो रही है जो हिंदू मुस्लिम की एकता के साथ-साथ लोगों की सामाजिक सौहार्द और परिवार में अमन चैन की वकालत करते हैं। यह कहना भी अतार्किक नहीं होगा कि बड़े और छोटे राजनीतिक दल भी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करते हुए उनको असुरक्षित बताकर हाशिए पर ला रहे हैं। मुस्लिम समाज में कोई बुद्धिजीवी अगर सकारात्मक नेतृत्व प्रदान करने के लिए आगे आता है तो राजनीतिक महत्वाकांक्षी वाले लोग उसे पीछे ढकेल देते हैं और कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोग अग्रणी बनकर नेतृत्व संभाल लेते हैं, जिसके चलते दिल्ली के मरकज जमात तब्लीगी का नेतृत्व भी एक ऐसा ही उदाहरण है, जहां मौलाना साद न केवल सवालों के घेरे में हैं बल्कि उनकी हठधर्मिता के चलते एक बड़े मुस्लिम समुदाय को आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है जो इस गिरफ्त में पूरी तरह से निर्दोष थे। बात करें उस फल विक्रेता की जो थूककर फल बेच रहा था, जिसने मानवता को तार तार करते हुए अपनी घिनौनी करतूत से देश के अन्य शहरों और ग्रामीण इलाकों में फल वाले सामान बेचकर जीवन यापन करने वाले लोगों के सामने सामाजिक बहिष्कार की चुनौती खड़ी कर दी है। उन मुस्लिम गरीबों को रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं जो फल या सामान बेच कर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे, उन्हें भी नकारात्मक दृष्टि से देखते हुए उनसे नाम और पहचान पूछी जा रही है। उसके बाद सामान की खरीदारी की जाती है। हालात यहां तक हो चुके हैं कि कई मुसलमान फल विक्रेताओं के फल सुबह से शाम तक नहीं बिक पाते और उन्हें आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। सवाल यह उठ रहा है कि तब्लीगी जमात में किए गए घिनौने कृत्य का नुकसान मुस्लिम समाज के उन गरीबों को क्यों उठाना पड़ रहा है, जिन्होंने कभी दिन में कमाने और रात में खाने के अलावा बाहर की दुनिया को देखा ही नहीं। वक्त बदलने के साथ-साथ लोगों के मनों की भावनाएं बदलती जा रही हैं और संकीर्ण मानसिकता के साथ साथ जो हिंदू मुस्लिम एक दूसरे के घर आते जाते एक दूसरे के साथ खाना खाते रहते थे वे दूरी बनाते नजर आ रहे हैं। यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आने वाले समय में इन दोनों समुदायों के लोगों के बीच बढ़ती हुई दूरियां लंबे अरसे तक सामान्य हो पाएंगी अथवा नहीं। अंततः हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों को एक दूसरे के प्रति सद्भावना के साथ कोरोना वायरस से जंग लड़ने के लिए लॉक डाउन के नियमों का पालन करना होगा और घिनौने कृत्य करने वाले लोगों को माकूल जवाब देना होगा। दोनों समुदाय के लोगों को सामाजिक दृष्टि अपनाकर सौहार्द अपनाना होगा, जिससे उनके और उनके परिवार के साथ साथ धर्म और देश की विजय होगी।
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Answer:
each time I have the same thing I have done with the same problem and I have a good deal to do in the world is the best of the players to the game in my game in this game of thrones season two and then a couple more times in a year of the players to win a league of Clans I need a good deal of Clans and they are the most important players and the rest are not the person they want but often it is not a good deal but they have to be able and you can see the best way of life in a year and the rest are the best of all time to be the most important person in your area of work and sst is a great way to improve their chances of winning the game and the world cup and the world cup and they will be able to get the best of the process of the process of the process and how it is to be able to do in a very important way and to be the best of a person who is in an area that differentitates 77the street and the world of social security is the only thing that can really be able 55th century and David Cameron is the best way of getting the best of the process of the process and the world cup and the rest are the most common way of getting the right people.