नृत्य मेरी भावनाओं का सार है । write an essay
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नृत्य मानवीय अभी व्यक्तियों का एक रसमय प्रदर्शन है। यह एक सार्वभौम कला है, जिसका जन्म मानव जीवन के साथ हुआ है। बालक जन्म लेते ही रोकर अपने हाथ पैर मार कर अपनी भावाभीव्यक्ति करता है की वह भूखा है- इन्हीं आंगिक- क्रियाओं से नृत्य की उत्पत्ति हुई है। यह कला देवी- देवताओं- दैत्य दानव- मनुष्यों एवं पशु -पक्षियों को अति प्रिय है। भारतीय पुराणों में यह दुष्ट नाशक एवं ईश्वर प्राप्ति का साधन मानी गई है। अमृत मंथन के पश्चात जब दुष्ट राक्षसों को अमृत प्राप्त होने का संकट उत्पन्न हुआ तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने लास्य नृत्य के द्वारा ही तीनों लोकों को राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी। इसी प्रकार भगवान शंकर ने जब कुटिल बुद्धि दैत्य भस्मासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि वह जिसके ऊपर हाथ रखेगा वह बस में हो जाए तब उस दुष्ट राक्षस ने स्वयं भगवान को ही भस्म करने के लिए कटिबद्ध हो का हो उनका पीछा किया- एक बार फिर तीनों लोग संकट में पड़ गए थे तब फिर भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपनी मोहक सौंदर्य पूर्ण नित्य से उसे अपनी ओर आकर्षित कर उसका वध कर दिया
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