नृत्य और संगीत में क्या परस्पर संबंध है।
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संगीत
मध्ययुगीन भारत में संगीत की दो अलग धाराओं का विकास देखने को मिला। एक था दरबारी संगीत जिसे शाही संगीत भी कह सकते हैं। संगीत की इस धारा को आगरा, फतेहपुर-सीकरी, लखनऊ, जौनपुर, वाराणसी, अयोध्या, बांदा और दतिया के राजघरानों या नवाबी खानदानों में प्रश्रय मिला। दूसरी धारा भक्तिभाव से ओत-प्रोत थी, जिसे भक्ति संगीत के नाम से भी जाना जाता है। यह मथुरा, वृंदावन और अयोध्या में पुष्पित-पल्लवित हुई। उत्तर प्रदेश के शासकों और संगीतकारों ने हिंदुस्तानी संगीत को बढ़ाने और समृद्ध करने के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया।
शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज, तबला वादक पंडित किशन महाराज, बाबा अल्लाउदीन खान और उनके शिष्य पंडित रवि शंकर और उस्ताद विलायत खान, ग़ज़ल साम्राज्ञी बेगम अख्तर, रसूलन बाई, गिरिजा देवी और अन्य कई प्रतिष्ठित संगीत के पुजारियों ने यूपी में ही रहकर न सिर्फ अपनी कला को विदेशों तक पहुंचाया बल्कि भारतीय संगीत की समृद्ध विरासत को और बढ़ाने का काम भी किया।
नृत्य कला
भारत के छह शास्त्रीय नृत्यों में से एक है कथक। यह भी उत्तर प्रदेश में ही पुष्पित-पल्लवित हुआ है। कथक बना है कथा यानी कहानी शब्द से। इसमें नृत्य के माध्यम से किसी पौराणिक कहानी को पेश किया जाता है। शास्त्रीय नृत्य की यह शैली 7वीं सदी में उत्तर भारत में विकसित हुई थी। कथक नृत्य में हाथ और पैर का बेहद जटिल संयोजन होता है। साथ ही कथा के अनुरूप कथक में चेहरे के भावों को भी व्यक्त करना पड़ता है।
संगीत के वाद्य यंत्रों खासकर तबले और पखावज की ताल पर पैरों की थिरकन और हाव-भाव को प्रदर्शित करना इसे अनूठी नृत्य शैली बनाता है।
इसके अलावा लोक नृत्य की भी उत्तर प्रदेश में समृद्ध विरासत मौजूद है-
रामलीला कला का वह माध्यम है जिसके जरिये भगवान राम के जीवन से जुड़े प्रसंगों को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें भी जरूरत के मुताबिक नृत्य का समावेश किया जाता है। रामलीला अमूमन मंच पर प्रस्तुत की जाती है, लेकिन अब इसे नाट्य शैली में भी ढाला जाने लगा है।
ब्रज रासलीला में भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़े प्रसंगों को प्रदर्शित किया जाता है।
चरकुला राज्य की एक लोक नृत्य शैली है। इसमें नृत्यांगना अपने सिर पर जलते हुए दीपकों का मुकुट सरीखा धारण कर जटिल भाव-भंगिमाओं को प्रदर्शित करती है। यह अकेले और समूह दोनों में किया जाता है।
रसिया में भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम को जीवंत किया जाता है। चरकुला और रसिया लोक नृत्य ब्रज क्षेत्र की स्थानीय कला संस्कृति का अभिन्न अंग है।
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