नेटबंदी से हमें कैन कैन सी कठिनाई का सामान करना पड़ा
Answers
अगले दिन से ही बैंक व ए टी एम लोगों के स्थाई पते बन गए। लाइनें दिनों दिन भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या को दिखानें लगीं। सरकार भी कभी लोगों को राहत देने के लिए व कभी काला धन जमा करने वालों के लिए नए नए कानून बनाती दिखी। कभी बैंक व ए टी एम से पैसे निकलवाने की सीमा घटाना व बढ़ाना व कभी पुराने रुपयों को जमा करवानें के बारे में नियम में सख्ती करना या ढील देना।
विपक्षी दल पूरी एकजुटका से सरकार के निर्णय को असफल व देश को पीछे ले जाने वाला सिद्ध करने में लग गए। उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था मानों किसी ने उनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो। लगभग पूरा विपक्ष सरकार के इस अन्याय के खिलाफ खड़ा हो गया। मोर्चे, प्रदर्शन, रोष प्रकट किये गए। अनेकता में एकता का भाव सार्थक हुआ।
दूसरी तरफ सरकार अपने इस निर्णय को सही साबित करने में लगी रही। कभी प्रधानमंत्री व उनकी टीम लोगों को इस नोटबंदी के फायदे गिनाने में लगे रहे व कभी पचास दिन का समय मांगते नजर आये। लोगों के अंदर भी बहुत भाईचारा देखने को मिला। अमीर दोस्तों को उनके गरीब नाकारा दोस्त याद आये। अमीर रिश्तेदारों को अपने गरीब रिश्तेदारों के महत्व का एहसास होने लगा। अमीर बेटे की गरीब माँ का बैंक अकॉउंट जो की पिता की मौत के बाद मर चुका था अचानक जिन्दा हो गया। ऐसा लगा मानों पूरी मानवता जिन्दा हो गई।
रंतु प्रश्न यह है कि ये लोग कुछ वर्ष पहले सिलेंडर की सुबह 4 बजे से ही लगने वाली लाइनों से कैसे बचे या फिर जब फिल्म या मैच की टिकट के लिए खड़ा होना पड़ता है फिर कोई पहाड़ क्यों नहीं टूटता।
नोटबंदी की वजह से पुराने जमानें में सफल बार्टर पद्धति फिर से कारगर सिद्ध हुई। लोगों ने बिना पैसे के भी दिन गुजारने सीख लिए। सच कहूं हमें तो कोई समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। बस थोड़ा एडजस्ट करना पड़ा। देश के लिए थोड़ी बहुत तकलीफ जरूरी भी है।
मीडिया वालों का भी बहुत शानदार रोल रहा। कुछ नोटबंदी पर सरकार के फैसलें के पक्ष में खड़े दिखाई दिए व् कुछ विपक्ष में। कुछ न्यूज़ चैनल्स को लोग लाइनों में मजे लेते दिखाई दिए दूसरी तरफ कुछ को मरते। कुछ चैनल्स के अनुसार लगभग सौ लोगों ने लाइनों में खड़े होकर अपनी जान गवाई।