नाटक की वास्तविक कसौटी किसे माना जाता है
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नाटक के विषय में प्राचीनतम मत 'नाट्यशास्त्र' के प्रथम अध्याय में मिलता है। यद्यपि भरत मुनि ने अपने 'नाट्यशास्त्र' ग्रन्थ में स्वतंत्र रूप से लोकनाट्यों के विषय में कुछ नहीं बताया है, परन्तु उन्होंने लोक मन को ही नाटक की वास्तविक प्रेरणा और कसौटी माना है।
उनका मानना है कि नाटक की उत्पत्ति भले ही वेदों या अध्यात्म से हुई हो, लेकिन वह तभी सिद्ध होगा जब उसका आधार संसार होगा। लोक नाटक लोगों के मनोरंजन और शिक्षा का माध्यम रहे हैं। डॉ. शंकर लाल यादव के अनुसार लोकनाट्य रासलीला और रामलीला से प्रेरित रहे होंगे। उसका जन्म नकल करने की मूल प्रवृत्ति के कारण हुआ होगा। इसी आधार पर अनुकरण या प्रहसन को लोकनाट्य का प्रमुख रूप माना गया है।
भारतीय नाटकों का इतिहास अति प्राचीन है। भरतमुनि का नाट्यशास्त्र नाटक का मूल स्रोत है। यह ग्रंथ तीसरी शताब्दी में लिखा गया था। ब्रह्मा द्वारा रचित नाटकों को पंचम वेद भी कहा जाता है। लोक नाटकों की परम्परा साहित्यिक नाटकों से कहीं अधिक पुरानी है। धनंजय के दशरूपक और विश्वनाथ के साहित्य दर्पण में भी नाटक विधा के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलती है। कालिदास ने भी कहा है कि नाटक विभिन्न रुचियों वाले व्यक्तियों के मनोरंजन का अनुपम साधन है।
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