नाटक लेखन में किन तत्वों का होना अनिवार्य है किन्हीं तीन पर विचार कीजिए
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नाटक को नाटक के तत्व प्रदान करने का श्रेय इसी को है। यही नाट्यतत्व का वह गुण है जो दर्शक को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। इस संबंध में नाटककार को नाटकों के रूप , आकार , दृश्यों की सजावट और उसके उचित संतुलन , परिधान , व्यवस्था , प्रकाश व्यवस्था आदि का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
नाटक लेखन के अनेक तत्व होते हैं, तीन मुख्य तत्व इस प्रकार हैं...
कथावस्तु : नाटक लेखन का सबसे मुख्य तत्व उसकी कथावस्तु होता है। नाटक की कथावस्तु ही नाटक के उद्देश्य और उसकी दिशा को तय करती है। नाटक की कथावस्तु से ही पूरे नाटक की रूपरेखा पता चल जाती है। नाटक की कथावस्तु जितनी अधिक प्रासंगिक होगी नाटक उतना अधिक रोचक एवं उत्तम बनेगा।
नाटक के पात्र एवं उनका चरित्र चित्रण : नाटक के पात्र नाटक में मुख्य तत्व की भूमिका निभाते हैं। नाटक के पात्र और उनका चरित्र चित्रण जितना अधिक सटीक होगा, नाटक उतना ही अधिक प्रभावी बन पड़ेगा। नाटक के पात्र दर्शक के मन स्थिति पर अलग प्रभाव छोड़ते हैं। नाटक के पात्रों से वे प्रेरणा लेते हैं। इसलिए नाटक के पात्र और उनका चरित्र चित्रण सटीक होना चाहिए।
संवाद : संवाद नाटक की अहम धुरी है। किसी भी नाटक के मंचन में संवाद अहम भूमिका निभाते हैं। संवाद सीधे तौर पर दर्शक के मन पर प्रभाव छोड़ते हैं। एक साधारण सी कथावस्तु वाे नाटक को उसके संवाद उसके संवाद बेहद प्रभावी बना सकते हैंं। संवाद छोटे एवं प्रभावशाली होने चाहिए।
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