नाटकातील प्रकाश योजनेचे महत्व
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काव्य-नाटक में काव्य-तत्त्व और नाटक-तत्त्व का समन्वय होता है।
अनुभूतियों का नाटकीय प्रकाशन होता है।
बहिर्जगत को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता।
विषय-वस्तु काव्यात्मक एवं नाटकीय होती है।
रूप विधान पूर्णरूप से काव्यात्मक एवं नाटकीय होता है।
काव्यात्मक विषय-वस्तु अभिनय होती है।
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