नाथ आज मैं काह न पावा। मिटे दोष दु:ख दरिद दावा।
बहुत काल में कीन्हिं मजूरी। विधि मोहि दीन्हिं आज भलिपूरी
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नाथ आजु मैं काह न पावा। मिटे दोष दु:ख दारिद दावा॥
बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी। आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी॥3॥
भावार्थ
(उसने कहा-) हे नाथ! आज मैंने क्या नहीं पाया! मेरे दोष, दुःख और दरिद्रता की आग आज बुझ गई है। मैंने बहुत समय तक मजदूरी की। विधाता ने आज बहुत अच्छी भरपूर मजदूरी दे दी॥3॥
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