निंदा की सचमुच बड़ी महिमा है। जहाँ पर दो-चार निंदक बैठे किसी की निंदा का आनंद ले रहे हों, उन्हें
ध्यान से देखो और उनकी तुलना ईश्वर का भजन करती भक्तमंडली से करो। ऐसा प्रतीत होगा कि निंदक
अधिक मन लगाकर, अधिक अपनेपन के साथ, अधिक भाव-विभोर होकर निंदा करते हैं। भक्त भी उस निष्ठा से
भक्ति नहीं करता, जिस निष्ठा से निंदक, निंदा करते हैं। यही कारण है कि संतों ने निदकों को अपने आँगन में
कुटिया बनवाकर रखने का आग्रह किया था।
निंदा का एक रूप वह भी है, जहाँ पर निंदक किसी प्रतिद्वंद्वी से द्वेष या जलन के कारण उसकी निदा
करता है। द्वेष के कारण की जाने वाली निंदा सीमित रहती है, इसलिए उसमें इतना मज़ा नहीं आता। द्वेष के
कारण निंदा करने वाला निदक, मिशनरी निंदक की तरह प्रसन्न नहीं रह पाता। वह प्रायः दुखी रहता है। द्वेषी
निंदक हर समय द्वेष के कारण जलता है और अपनी जलन पर निंदारस का जल छिड़कता रहता है। उसे इसी
में शांति मिलती है। जिस प्रकार चाँदनी रात में कुत्ते चाँद को देखकर प्रायः भौंकना प्रारंभ कर देते हैं, उसी प्रकार
निंदक भी अपने प्रतिद्वंद्वी के गुणों को देखकर भौकने लगते हैं।
उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
1. संतों ने निंदकों को अपने आँगन में कुटिया बनवाकर रहने के लिए क्यों कहा है?
2. द्वेष के कारण की जाने वाली निंदा किस प्रकार की होती है तथा उसमें निंदक दुखी क्यों रहता है?2
3. द्वेची निंदक को किस कार्य से शांति मिलती है तथा लेखक ने उसकी तुलना कुत्ते से क्यों की है? 2
4.लेखक ने किस तरह की निंदा को 'सीमित निंदा' कहा है?
5. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
Answers
1. संतों ने निंदकों को अपने आँगन में कुटिया बनवाकर रहने के लिए क्यों कहा है?
Answer: निंदा की सचमुच बड़ी महिमा है। जहाँ पर दो-चार निंदक बैठे किसी की निंदा का आनंद ले रहे हों, उन्हें ध्यान से देखो और उनकी तुलना ईश्वर का भजन करती भक्तमंडली से करो। ऐसा प्रतीत होगा कि निंदक अधिक मन लगाकर, अधिक अपनेपन के साथ, अधिक भाव-विभोर होकर निंदा करते हैं। भक्त भी उस निष्ठा से भक्ति नहीं करता, जिस निष्ठा से निंदक, निंदा करते हैं। यही कारण है कि संतों ने निदकों को अपने आँगन में कुटिया बनवाकर रखने का आग्रह किया था।
2. द्वेष के कारण की जाने वाली निंदा किस प्रकार की होती है तथा उसमें निंदक दुखी क्यों रहता है?
Answer: द्वेष के कारण की जाने वाली निंदा सीमित रहती है, इसलिए उसमें इतना मज़ा नहीं आता। द्वेष के कारण निंदा करने वाला निदक, मिशनरी निंदक की तरह प्रसन्न नहीं रह पाता। वह प्रायः दुखी रहता है। द्वेषी निंदक हर समय द्वेष के कारण जलता है और अपनी जलन पर निंदारस का जल छिड़कता रहता है।
3. द्वेची निंदक को किस कार्य से शांति मिलती है तथा लेखक ने उसकी तुलना कुत्ते से क्यों की है?
Answer: कबीर जी ने निंदक व्यक्ति की तुलना धोबी से की है क्योंकि वह बिन साबुन तथा बिन पानी के हमारे मैले कपड़े रूपी हृदय को धोता है। कबीर जी अपने दोहे में कहते है निंदक नियरे राखिए आंगन छवाय बिन पानी, बिन साबुन , निर्मल करे सुभाय। वे कहते है कि अपने निंदक को अपने पास ही रखना चाहिए , हो सके तो अपने आंगन में ही उसे घर बनाकर देना चाहिए जिससे वो हमारे मैले मन को साफ करते रहेगा व हमें हमारे अवगुणों से अवगत करवाएगा। कबीर जी कहते है कि निंदक हमारे लिए सफाई का काम करते है , वे हमारे शुभ चिंतक है क्योंकि वे बिना साबुन तथा बिना पानी के
4. लेखक ने किस तरह की निंदा को 'सीमित निंदा' कहा है?
Answer: इस दोहे में कबीर जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही हैं उन लोगों के लिए जो दिन रात आपकी निंदा करते हैं और आपकी बुराइयाँ बताते हैं। कबीर जी कहते हैं ऐसे लोगों को हमें अपने करीब रखना चाहिए क्योंकि वे तो बिना पानी, बिना साबुन हमें हमारी नकारात्मक आदतों को बताते हैं जिससे हम उन नकारात्मक विचारों को सुधार कर सकारात्मक बना सकते हैं।
5. प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
Answer: निंदा
#SPJ1
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