निंदा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है | मनुष्य अपनी हीनता से दबता है | वह दूसरों की निंदा करके ऐसे अनुभव करता है कि वह सब निकृष्ट है और वह उनसे अच्छा है | उसके अहम कि इससे संतुष्टि होती है |बड़ी लकीर को कुछ मिटा कर छोटी लकीर बनती है | जो जो कर्म क्षिण होता जाता है, क्यों क्यों निंदा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है | कठिन कर्म ही ईर्ष्या- द्वेष और इन से उत्पन्न निंदा को मारता है | इंद्र बड़ा ईर्ष्यालू माना जाता है | अकर्मण्यता में उन्हें प्रतिष्ठित होने का भय बना रहता है, इसलिए कर्मी मनुष्यों से उन्हें ईर्ष्या होती है |
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Manushya aur Ninnaa.......
ii66623:
paaka
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मनुष्य की हानी.. Plz matk as brainlist.
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