निंदा का उद्गम हीनता और कमजोरी से क्यों माना जाता है
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निंदा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है | मनुष्य अपनी हीनता से दबता है | वह दूसरों की निंदा करके ऐसे अनुभव करता है कि वह सब निकृष्ट है और वह उनसे अच्छा है | उसके अहम कि इससे संतुष्टि होती है |बड़ी लकीर को कुछ मिटा कर छोटी लकीर बनती है | जो जो कर्म क्षिण होता जाता है, क्यों क्यों निंदा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है |
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