निंदा करने वाले व्यक्ति के द्वारा बिना साबुन और पानी के स्वभाव निर्मल करने का क्या आशय है
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निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। अर्थात: जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिक से अधिक पास ही रखना चाहिए क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ कर देता है। यह कबीर जी का दोहा है जो उनकी साखियों से लिया गया है।
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