नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत।।
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
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अवतरण - नाद रीझि -------------------------- रीझेहु कछू न देत।।
व्याख्या- गान के स्वर पर रीझ कर मृग अपना शरीर शिकारी को सौंप देता है। और मनुष्य धन-दौलत पर प्राण गंवा देता है। परन्तु वे लोग पशु से भी गये बीते हैं, जो रीझ जाने पर भी कुछ नहीं देते।
अवतरण - बिगरी बात बनै -------------------- मथे न माखन होय।।
व्याख्या - मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।
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