नाथ (१) संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।। आयसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।। सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई।। सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।। सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।। सुनि मुनि बचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अपमाने।। तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।। एहि धनु पर ममता केहि तू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।। रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न सँभार। धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार।। बहु धनुहीं
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