निंदक को क्या समझना चाहिए ? class 10
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यहां हर कोई प्रशंसा का भूखा है। सच्ची हो या झूठी, किसी से अपने बारे में अच्छी बातें सुनने के लिए कान तरसते हैं। राजनीति और फिल्म जगत में तो हर नेता और अभिनेता प्रशंसकों से घिरे रहते हैं। उन्हें चालू भाषा में चमचे कहा जाता है। ऐसे लोग अहंकार को हवा देते हैं। लेकिन जो पहुंचे हुए संत हैं, वे कहते हैं- प्रशंसा से सावधान। क्योंकि प्रशंसा से हित नहीं, अहित ही होगा। कबीर कहते हैं, निंदक नियरे राखिए। ओशो कहते हैं कि निंदक की बातें ध्यान से सुनें। वह आपका आईना बन सकता है।
प्रशंसा तभी प्रशंसा जैसी मालूम होती है, जब आप जैसे नहीं हों, आपको वैसा बतलाया जाए। जो सुंदर नहीं है, उसे सुंदर बताकर खुश किया जा सकता है। बुजुर्ग को कोई कहे कि आप जवान लग रहे हैं, तो वह कैसे खिल उठता है। प्रशंसा सदा एक झूठ होती है। सच हो, तो फिर उसमें प्रशंसा जैसा क्या रहा? गुलाब के फूल को कोमल कहा, तो कौन-सी प्रशंसा हुई? प्रशंसा तो तब हुई, जब कांटे को कोमल कहा। और ऐसी प्रशंसा से बढ़ता है भीतर का अहंकार।
हमारा सामाजिक जीवन अहंकार को फुलाता है, वह झूठ का जोड़ है। हजार तरह के झूठ इकट्ठे करके अहंकार खड़ा होता है। जब अहंकार इतना बड़ा बन जाए, तब आदमी सच का सामना नहीं कर सकता। आज हम जरा-सी भी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते, क्योंकि अहंकार एक विराट महल बन चुका है। सभी प्रबुद्ध लोगों ने कहा है कि निंदा के प्रति कान बंद मत करना, उससे लाभ ही हो सकता है, हानि कुछ भी नहीं होगी। निंदा सुनने और पचाने से आप अपने भीतर के घाव उघाड़ सकते हैं, खामियां दूर कर सकते हैं। बुराई को जितना छिपाएंगे, उतना ही वह नासूर बनेगी। अगर निंदा झूठी हो, तो उसकी उपेक्षा करें, लेकिन अगर निंदा सच हो, तो उसे अपना असली चेहरा दिखाने वाला आईना मानिए।