निंदक नेडा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणी बिना, निरमल करै सुभाइ।।
iss dohe ka hindi mein Arth...
Answers
ये कबीर दास जी द्वारा रचित एक दोहा है, सही दोहा इस प्रकार है...
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
अर्थ: अपनी निंदा और आलोचना करने के हमेशा अपने साथ रखों, क्योंकि वो आपके दोषों को बताते रहेंगे, जिससे आपको अपनी गलती पता चले और आप स्वयं में सुधार कर सको। अर्थात अपनी आलोचना करने वालों से कभी घबराना नही चाहिये बल्कि उनकी बातों पर भी ध्यान देना चाहिये, ये निंदक लोग अगुण रूपी मैल को बिना पानी और साबुन के धो देते हैं, और साफ कर देते हैं।
निंदक नेडा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणी बिना, निरमल करै सुभाइ।।
कबीर जी इस दोहे में समझाना चाहते है कि, कि व्यक्ति को सदा चापलूसों से दूरी और अपनी निंदा करने वालों को अपने पास ही रखना चाहिए, क्योंकि निंदा सुन कर ही हमारे अन्दर स्वयं को निर्मल करने का विचार आ सकता है और वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है|
▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬
संबंधित कुछ अन्य प्रश्न...►
https://brainly.in/question/4520019
कबीर की साखी कबिता का केंद्रीय भाउ likheyn