'निंदक नियरे राखिए' इस पंक्ति के बारे
में अपने विचार लिखिए।
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यह कबीर दास जी का दोहा है इसका अर्थ है की व्यक्ति को अपनी निंदा करने वाले को हमेशा अपने पास रखना चाहिए क्योंकि निंदा सुनकर ही हमारे अंदर स्वयं को निर्मल करने का विचार आ सकता है और यह निर्मलता पाने के लिए हमें किसी भी वस्तु की आवश्यकता नही होगी।
hope it's helpful to you dear
digvijaykshirsagar33:
thank you
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