नीड़ का निर्माण फिर फिर कविता का पंक्तियों का अर्थ
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इसके रचयिता हरिवंशराय बच्चन' हैं। प्रसंग – कवि ने कविता द्वारा जीवन की कठिनाइयों से लड़ने और सब कुछ नष्ट हो जाने पर भी फिर से नए निर्माण की प्रेरणा दी है। व्याख्या – हे पक्षी! अपने नष्ट हुए घोंसले का फिर से निर्माण कर और अपने मीठे स्वर से इस संसार में फिर से प्रेम और स्नेह भर दे।
हरिवंशराय बच्चन जी कहते हैं कि बार-बार प्रेम की पुकार लगाता हुआ चहचहाता हुआ पक्षी एक नहीं कई बार अपने घोंसले निर्माण करता है जब वह अपने घोंसले को घास फूस और तिनको की सहायता से बना कर तैयार करता है तभी अचानक तेज़ तूफानी हवा चलने लगती है और आकाश में अचानक अंधेरा छा जाता है और बादल धरती को इस प्रकार चारों तरफ से घेर लेते हैं कि दिन में रात होने का अनुमान होने लगता है । आकाश साफ ना होने कारण चंद्रमा की किरणे धरती पर नहीं पहुंच पाती और रात पहले की अपेक्षा बहुत काली हो जाती है। भयंकर काली रात को देख कर ऐसा लग रहा था मानो या रात कभी बीतेगी ही नहीं और न ही नया सवेरा होगा रात के समय का यह उपद्रवी वातावरण प्रत्येक व्यक्ति के मन को जीव-जंतुओं और धरती के कण-कण को भ्रमित कर देता है तभी अचानक पूर्व दिशा की तरफ से मोहिनी मुस्कान को बिखेरते हुए सुंदर सूर्य का उदय होता है और प्रत्येक प्राणी के मन से आशा की भावना का संचार होता है पक्षी के माध्यम से यहां कवि मानव जाति को संदेश दे रहा है कि हमें जीवन की कठिनाइयों से हार न मानते हुए जीवन रूपी रास्ते पर हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए और नया निर्माण करते रहना चाहिए।
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कविता का अर्थ