Hindi, asked by missionKumar7, 8 months ago

नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,​ इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करो

Answers

Answered by TwilightShine
8

Answer:

उपर्युक्त पंक्ति कविता " हम पंछी उन्मुक्त गगन के" , रचनाकार - शिवमंगल सिंह सुमन से ली गई है |

इस पंक्ति में पक्षी मनुष्य से यह कहना चाह रहे हैं कि अगर वह उन्हें पानी ना दें और उनका आश्रय छिन्न-भिन्न भी कर डाली, तब भी ठीक है मगर उनकी मनुष्य से सिर्फ एक विनती है कि अगर ईश्वर ने उन्हें पंख दिए हैं तो वह उनकी आकुल उड़ान में विघ्न ना डालें |

उम्मीद है यह उत्तर आपकी मदद करेगा |

Similar questions