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जीवन में आ दिर अहान,
दर्य श्री मुत्य प्राधा,
मैं उसका प्रेमी बने नाथ,
जी हा मात्र के हित मान।
जिससे जीवन में मिले शनि,
छुटे भय, राय, अंधभकिन,
में वह प्रकाश बन गॐ नाथ,
मिल जाएँ जिनमें अस्ति व्यक्ति।
पाकर प्रभु तुमसे अमर दान,
करने मानव का परित्राण,
ला सर्दै विश्व में एक बार,
फिर से नवजीवन का विहान
-सुमित्रानंदन पंत ।
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