निवसत:” पदे उपसर्ग , धातुनां च
नि उपसर्ग वद् धातु
नि उपसर्ग वस् धातु
नि उपसर्ग भू धातु
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उपसर्ग का सम्बन्ध धातु के साथ बड़ा ही रोचक है, अथवा यह कहना ज्यादा उपयुक्त होगा कि प्र, परा आदि धातु के साथ मिलने पर ही उपसर्ग कहे जाते हैं। महर्षि पाणिनि का स्पष्ट मत है –
प्रादयः१, उपसर्गाः क्रियायोगे २
अर्थात् क्रिया के योग में प्रयुक्त ‘प्र’ आदि उपसर्ग संज्ञा को प्राप्त होते हैं। ‘उपसर्ग’ शब्द का भी सामान्यतः यही अर्थ है जो धातुओं के समीप रखे जाते हैं। उपसर्ग के महत्त्व को ध्यान में रखकर कहा गया है –
उपसर्गेण धात्वर्थः बलादन्यः प्रतीयते।
प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत्।।
अर्थात् उपसर्ग से जुड़ने पर धातु का (मूल) अर्थ भिन्न हो जाता है। जैसे – ‘हार’ शब्द का अर्थ पराजय या माला है, किन्तु उपसर्ग लगने पर उसका अर्थ बिलकुल अन्य ही हो जाता है।
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