Hindi, asked by jayveergodara770, 26 days ago

नियोजन के फलस्वरुप उत्पन्न मुख्य विवाद के बिंदु कौन कौन से हैं ​

Answers

Answered by anshbagul79
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Answer:

नियोजन की तकनीक या प्रक्रिया

समस्या को परिभाषित करना- समस्या को परिभाषित करना नियोजन का वास्तविक बिन्दु है। ...

उद्देश्यों का निर्धारण- समस्या को परिभाषित करने के पश्चात् संस्था को अपने उद्देश्यों व लक्ष्यों का स्पष्ट निर्धारण करना चाहिए।

Explanation:

वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भविष्य की रुपरेखा तैयार करने के लिए आवश्यक क्रियाकलापों के बारे में चिन्तन करना आयोजन या नियोजन (Planning) कहलाता है। यह प्रबन्धन का प्रमुख घटक है।

आज जिस प्रकार के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक माहौल में हम हैं, उसमें नियोजन उपक्रम एक अभीष्ट जीवन-साथी बन चुका है। यदि समूहि के प्रयासों को प्रभावशाली बनाना है तो कार्यरत व्यक्तियों को यह जानना आवश्यक है कि उनसे क्या अपेक्षित है और इसे केवल नियोजन की मदद से ही जाना जा सकता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि प्रभावशाली प्रबन्ध के लिए नियोजन उपक्रम की समस्त क्रियाओं में आवश्यक है। लक्ष्य निर्धारण तथा उस तक पहुँ चने तक का मार्ग निश्चित किये बिना संगठन, अभिप्रेरण, समन्वय तथा नियन्त्रण का कोई भी महत्व नहीं रह पायेगा। जब नियोजन के अभाव में क्रियाओं का पूर्वनिर्धारण नहीं होगा तो न तो कुछ कार्य संगठन को करने को ही होगा, न समन्वय को और न ही अभिप्रेरणा और नियन्त्रण को। इसीलिए ही विद्वानों ने नियोजन को प्रबन्ध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य माना है। नियोजन की प्रक्रिया मानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही मौजूद है, क्योंकि यह मानव का स्वभाव रहा है कि उसे आगे क्या करना है? इसकी वह पूर्व में कल्पना करता है। आज इसका सुधरा हुआ स्वरूप हमारे सामने है।

Answered by roopa2000
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Answer:

भारत की प्रगति को लेकर महत्वपूर्ण मतभेद थे। स्वतंत्रता के कगार पर भारत में दो आधुनिक विकास मॉडल थे: यूरोप और अमेरिका में पाया जाने वाला उदार-पूंजीवादी मॉडल में और समाजवादी मॉडल जैसा कि यूएसएसआर में था। इन दोनों विचारधाराओं ने दो महाशक्तियों के बीच 'शीत युद्ध' को हवा दी।

Explanation:

राष्ट्रवादी नेता स्पष्ट थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार की आर्थिक चिंताओं को औपनिवेशिक सरकार के संकीर्ण रूप से परिभाषित वाणिज्यिक कार्यों से अलग होना होगा। यह स्पष्ट था कि गरीबी उन्मूलन और सामाजिक-आर्थिक पुनर्वितरण का कार्य मुख्य रूप से सरकार की जिम्मेदारी के रूप में देखा जा रहा था। इन मतभेदों को हल नहीं किया जा सका। इन दोनों मॉडलों के तत्वों को भारत में एक साथ लिया और मिलाया गया।

योजना आयोग की स्थापना मार्च 1950 में भारत सरकार द्वारा पारित एक साधारण प्रस्ताव द्वारा की गई थी। इसकी एक सलाहकार भूमिका होती है और इसकी सिफारिशें तब प्रभावी हो जाती हैं जब केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इन्हें मंजूरी दे दी।

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