Business Studies, asked by manoharnag50, 3 months ago

नियंत्रण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों का वर्णन करें​

Answers

Answered by reena8080158557
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Answer:

नियंत्रण का अर्थ पूर्व निर्धारित लक्ष्यों व उद्देश्यों के अनुसार प्रमापित कार्य सम्पन्न हो रहा है या नहीं जॉंच करना, यदि नहीं हो रहा है तो कमियों एवं कारणों की खोज कर सुधारात्मक कार्यवाही करना है। नियंत्रण के अर्थ में केवल किए गए काम की मात्रा की ही जॉंच नहीं की जाती है बल्कि किए गए काम की गुणवत्ता, उसमें लगे समय और उसकी लागत संबंधी जॉंच भी शामिल है।

अत: नियंत्रण में सम्मिलित हैं:-

कार्य की प्रकृति, मात्रा एवं समय-सारिणी को जानना;

निष्पादन का योजना से मिलान;

विचलन का विश्लेषण, यदि है तो;

सुधारात्मक कदम उठाना, और;

योजनाओं में परिवर्तन का सुझाव, यदि आवश्यक है तो,

Explanation:

नियंत्रण की विशेषताएं

योजना नियंत्रण का आधार है- नियंत्रण यह जांच करता है कि निष्पादन योजना के अनुरूप है या नहीं। अत: नियोजन नियंत्रण से पूर्व की क्रिया है तथा यह निष्पादन के मानक एवं लक्ष्य का निर्धारण करता है।

प्रबंधक का कार्य है- नियंत्रण संस्था प्रमुख का कार्य नहीं है प्रबंधक का कार्य है। जिसमें कार्य को प्रबंधक की ओर से कोई अन्य नहीं कर सकता स्वयं प्रबंधक को करना पड़ता है।

नियंत्रण सर्वव्यापक है- नियंत्रण प्रबन्ध के सभी स्तरों पर किया जाने वाला कार्य है। यह सभी कार्यात्मक क्षेत्रों तथा सभी इकाइयों एवं विभागों में किया जाता है। इस प्रकार से नियंत्रण सर्वव्यापक है।

कार्यवाही नियंत्रण का सार है- नियंत्रण कार्यवाही मूलक प्रक्रिया है। यदि निष्पादन में सुधार के लिए अथवा योजनाओं में परिवर्तन के लिए सुधारात्मक कार्यवाही नहीं की गई है तो नियंत्रण का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।

साधनों पर नियंत्रण- व्यक्ति ही नहीं अन्य साधनों पर नियंत्रण किया जाता है। जैसे- सामग्रीयों, मशीन तथा उत्पादन के अन्य निर्जीव साधन।

नियंत्रण आगे की ओर देखता है- नियंत्रण भविष्योन्मुखी होता है। यह वर्तमान निष्पादन को मापता है तथा सुधारात्मक कदम के लिए दिशा-निर्देश देता है। यह भविष्य में योजनाओं के अनुसार कार्य निष्पादन को सुनिश्चित करता है। इस प्रकार से यह भविष्योन्मुखी है।

उपक्रम को सहायता- नियंत्रण संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करती है। जो कि दीर्घकालीन योजना का एक अंग होता है।

निरंतर प्रक्रिया- नियंत्रण की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। प्रबंधक संस्था के उद्देश्यों की पूर्ती एवं कार्यों में समन्वय बनाने का प्रयास करता है। जो कि निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया होती हैं।

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