न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।
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जब अदालत में अलोपीदीन को दोषी के रूप में पेश किया गया तब वकीलों की सेना अपने तर्क से उन्हें निर्दोष सिद्ध करने में एकजुट हो गई| आरोपों को गलत प्रमाणों द्वारा झूठा साबित किया जाने लगा| उल्टा वंशीधर पर ही उद्दंडता तथा विचारहीनता का आरोप मढ़ दिया गया जो इमानदारी और सत्य के बल पर अदालत में खड़े थे| गवाहों को खरीद लिया गया था| धन के बल पर न्याय पक्षपाती हो गया और अखिरकार दोषी को निर्दोष करार दे दिया गया|
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न्यायालय में बंशीधर और आलोपीदीन का मुकदमा चला। वंशीधर धर्म के लिए और आलोपीदीन धन के सहारे अधर्म के लिए लड़ रहा था। इस प्रकार न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।
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