न्यायालय कितनी परिस्थिति में प्रशासन द्वारा दी जाने वाली कार्यवाही यों में अशुभ कर सकता है
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प्रशासकीय न्याय (Administrative justice) की व्याख्या ऐसी व्यवस्था के रूप में की जा सकती है जिसके अंतर्गत प्रशाकीय अधिकारियों को कानून द्वारा इस बात का अधिकार मिलता है कि वे निजी मामलों का अथवा निजी एवं सरकारी अधिकारियों के बीच उठनेवाले मामलों का निपटारा कर सकें। भारत में यह व्यवस्था यद्यपि ब्रिटिश शासन की देश में शुरुआत होने के समय से ही कोई अनजानी बात नहीं रह गई थी, फिर भी 20वीं सदी में हुए प्रथम तथा द्वितीय महायुद्धों के बाद यह उत्तरोत्तर अधिक प्रचलित होती गई ; विशेषत: देश की स्वाधीनता के बाद, जब कि सत्तारूढ़ राजनीतिक दल ने समाजवादी समाज के ढाँचे का रूप राष्ट्रीय लक्ष्य के तौर पर अपनाया।
प्रशासकीय न्याय भारत में इन दिनों एक उपयोगी कार्य कर रहा है। विधिव्यवस्था की रक्षा के लिये यह आवश्यक नहीं है कि केवल सामान्य न्यायालयों को ही मामलों के निर्णय का एकाधिकार प्राप्त हो। प्रशासकीय न्यायालयों का सहारा लिए बिना आज का राज्यतंत्र अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह भलीभाँति नहीं कर सकता।
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