Hindi, asked by AnweshaRay, 1 month ago

न्यायप्रियता पर अनुच्छेद 150 शब्दों में​

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Answered by BrainlSrijan1
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एक था राजा। एक सुबह उसने देखा, कि ढेर सारे प्रजाजन उसके राजमहल के आगे गुहार कर रहे हैं। राजा यह देख कर आश्चर्यचकित, द्रवित हुआ कि उन लोगों के चेहरे निस्तेज थे, व पैर टेढ़े- मेढ़े अशक्त थे।

राजा ने अपने महामंत्री को तुरन्त बुलवाया और कहा, मंत्रिवर, मैं इनकी दशा देखकर बहुत दुखी हूँ। राजकोष से तुरन्त पौष्टिक आहार एवं औषधियों का प्रबंध किया जाए ताकि इनके पैर बलिष्ठ हो सकें, व चेहरे तेजस्वी।

मंत्री राजा के कान के पास जा फुसफुसाया, दुहाई हो महाराज की, यदि इनके पैर बलिष्ठ हो गए, और शरीर स्वस्थ हो गए, तो यह इतना झुक कर हमें प्रणाम नहीं करेंगे।

राजा यह सुनकर अपनी पनेरी मूँछों के बीच मुस्कराया, और उपस्थित प्रजाजनों को नि:शुल्क बैसाखियाँ प्रदान कर दी। राजा की जय-जयकार से महल की दीवारें हिल गईं।

साभार:लघुकथा.कॉम

Answered by Anonymous
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बहुत से लोगों से अक्सर यह सवाल सुनने को मिलता है कि न्याय कहाँ मिलता हैं. इस प्रश्न का होना भी यह बताता है कि आज भी आम आदमी को आसानी से न्याय नहीं मिल पा रहा हैं. आधुनिक सामाजिक स्वरूप ने न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी कोर्ट अर्थात अदलिया पर डाल दी है वे ही न्याय के एकमात्र एवं सर्वोपरि स्रोत माने जाते हैं. भारतीय संस्कृति में न्याय का एक स्पष्ट विधान और इसका समृद्ध अतीत रहा हैं अक्सर राजा महाराजे ही न्यायिक मामलों को देखते थे, विस्तृत साम्राज्य की स्थिति में एक अलग से विभाग की व्यवस्था होती थी जो आज भी देखने को मिलती हैं. मगर इनसे असंतुष्ट व्यक्ति सच्चे न्याय की अपेक्षा केवल ईश्वर से रखता हैं, भगवान सब देखता है अथवा ईश्वर न्यायकारी है ये बेबसी भरे सबक उस इन्सान के दिल की पीड़ा को दर्शाते है जिसे हमारी न्याय व्यवस्था न्याय नहीं दे पाई हैं.

आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून के शासन के तहत अदालतों को न्याय एवं अन्याय में फर्क करने का अधिकार हासिल हैं. सही क्या है तथा गलत क्या है यह अदालत विधान की पुस्तकों के आधार पर तय करती हैं. आज लम्बित मामलों की संख्या को देखकर कहा जा सकता है इंसाफ चाहने वाले पीड़ित लोगों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं. न्याय की देरी व अभाव ही इसकी मांग को उतरोत्तर बढ़ा रहा हैं.

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