Social Sciences, asked by karshpreet924, 2 months ago

नियमित लेखक में से इसका प्रयोग गरीबी मापने के लिए किया जाता है परीक्षा और स्वास्थ्य शिक्षा और सुरक्षा संतरे आया अथवा उपयोग का संचरण उपयुक्त सभी​

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Answered by nandlalran118
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Answer:

गरीबी को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें व्यक्ति जीवन के निर्वाह के लिये बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है। इन बुनियादी आवश्यकताओं में शामिल हैं- भोजन, वस्त्र और घर।

चरम गरीबी अंततः मृत्यु की ओर ले जाती है। भारत में उपभोग और आय दोनों के आधार पर गरीबी के स्तर का आकलन किया जाता है।

उपभोग की गणना उस धन के आधार पर की जाती है जो एक परिवार द्वारा आवश्यक वस्तुओं पर खर्च किया जाता है और आय की गणना उस परिवार द्वारा अर्जित आय के अनुसार की जाती है।

एक और महत्त्वपूर्ण अवधारणा जिसका उल्लेख किया जाना ज़रूरी है, वह है गरीबी रेखा की अवधारणा। यह गरीबी रेखा भारत में गरीबी के मापन के लिये एक बेंचमार्क का काम करती है।

गरीबी रेखा को आय के उस अनुमानित न्यूनतम स्तर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो परिवार को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो।

2014 तक गरीबी रेखा का निर्धारण ग्रामीण इलाकों में 32 रुपए प्रतिदिन और कस्बों तथा शहरों में 47 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से निर्धारित की गई थी।

गरीबी दूर करने की नीति आयोग की रणनीति

2017 में नीति आयोग ने गरीबी दूर करने हेतु एक विज़न डॉक्यूमेंट प्रस्तावित किया था। इसमें 2032 तक गरीबी दूर करने की योजना तय की गई थी।

इस डॉक्यूमेंट में कहा गया था कि गरीबी दूर करने हेतु तीन चरणों में काम करना होगा-

गरीबों की गणना – देश में गरीबों की सही संख्या का पता लगाया जाए। गरीबी उन्मूलन संबंधी योजनाएँ लाई जाएँ। लागू की जाने वाली योजनाओं की मॉनीटरिंग या निरीक्षण किया जाए।

आज़ादी के 70 साल बाद भी गरीबों की वास्तविक संख्या का पता नहीं चल पाया है।

देश में गरीबों की गणना के लिये नीति आयोग ने अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में एक टास्क फ़ोर्स का गठन किया था। 2016 में इस टास्क फ़ोर्स की रिपोर्ट आई जिसमें गरीबों की वास्तविक संख्या नहीं बताई गई।

टास्क फ़ोर्स ने इसके लिये एक नया पैनल बनाने की सिफारिश की और सरकार ने सुमित्र बोस के नेतृत्व में एक समिति गठित की जिसकी रिपोर्ट मार्च 2018 में प्रस्तुत की गई।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना को आधार बनाकर देश में गरीबों की गणना की जानी चाहिये। इसमें संसाधनहीन लोगों को शामिल किया जाए तथा जो संसाधन युक्त हैं, उन्हें इसमें शामिल न किया जाए।

नीति आयोग ने गरीबी दूर करने के लिये दो क्षेत्रों पर ध्यान देने का सुझाव दिया-पहला योजनाएँ तथा दूसरा MSME। देश में वर्कफ़ोर्स के लगभग 8 करोड़ लोग MSME क्षेत्र में काम करते हैं तथा कुल वर्कफोर्स के 25 करोड़ लोग कृषि क्षेत्र में काम करते हैं। अर्थात् कुल वर्कफोर्स का 65 प्रतिशत इन दो क्षेत्रों में काम करता है।

वर्कफोर्स का यह हिस्सा काफी गरीब है और गरीबी में जीवन यापन कर रहा है। यदि इन्हें संसाधन मुहैया कराए जाएँ, इनकी आय दोगुनी हो जाए तथा मांग आधारित विकास पर ध्यान दिया जाए तो शायद देश से गरीबी ख़त्म हो सकती है।

गरीबी उन्मूलन की दिशा में हम कहाँ खड़े हैं?

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2018 (Multidimentional Poverty Index-MPI) के मुताबिक, 2005-06 तथा 2015-16 के बीच भारत में 270 मिलियन से अधिक लोग गरीबी से बाहर निकले और देश में गरीबी की दर लगभग 10 वर्ष की अवधि में आधी हो गई है। भारत ने बहुआयामी गरीबी को कम करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।

इस प्रकार दस वर्षों के भीतर, भारत में गरीब लोगों की संख्या 271 मिलियन से कम हो गई जो कि वास्तव में बहुत बड़ी उपलब्धि है।

पिछले कुछ सालों में भारत में गरीबी दूर करने की दिशा में अच्छा प्रयास किया गया है। पिछले आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, 22 प्रतिशत भारतीय गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।

भारत की अधिकांश आबादी अभी भी गाँवों में रहती है। हालाँकि भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पर्याप्त प्रवासन हुआ है लेकिन भारत की लगभग 68% आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।

हालाँकि गरीबी समय के साथ कम होती रही है, शहरी क्षेत्रों में गरीबी में कमी की दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक रही है। शहरी क्षेत्रों की 13.7% की तुलना में आज भी ग्रामीण भारत की लगभग 26% आबादी गरीब है।

रंगराजन समिति के अनुमान भी इस बात के संकेत देते हैं कि 2011-12 में ग्रामीण गरीबी का प्रतिशत शहरी गरीबी से अधिक था और यह लगभग 31% थी।

आज़ादी के 70 साल बाद भी गाँव सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के लगभग हर पहलू पर पीछे दिखाई दे रहे हैं।

भारत ने समृद्ध शहरों और गरीब गाँवों की अर्थव्यवस्था बनाई है जिससे शहरी क्षेत्रों में वृद्धि और ग्रामीण क्षेत्रों में गिरावट आ रही है।

केंद्र में मौजूदा सरकार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई जिसका प्राथमिक उद्देश्य "सब का साथ सबका विकास" था। शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की बढ़ती खाई को पाटने के लिये अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी गरीबी

ग्रामीण गरीबी काफी हद तक कम उत्पादकता और बेरोज़गारी का परिणाम है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था व्यापक रूप से कृषि पर निर्भर करती है। लेकिन भारत में खेती अप्रत्याशित मानसून पर निर्भर करती है जिससे उपज में अनिश्चितता की स्थिति बनी रहती है।

पानी की कमी, खराब मौसम तथा सूखा भी ग्रामीण इलाकों में गरीबी का प्रमुख कारण है। चरम गरीबी कई किसानों को आत्महत्या करने के लिये मजबूर करती है।

कई ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति इतनी दयनीय है कि इनमें स्वच्छता, बुनियादी ढाँचा, संचार और शिक्षा जैसी सुविधाओं का भी अभाव है।

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