Social Sciences, asked by mamtarai854, 2 months ago

नियमित नौकरी का क्या अर्थ है​

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Answered by sexyboy92
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एक व्यक्ति के द्धारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी व्यवसाय या औद्योगिक प्रतिष्ठान या शासकीय संस्थाओ मे अथवा दूसरे व्यक्ति के लिए किसी प्रतिफल के बदले मे कार्य करना नौकरी कहलाता हैं। यह प्रतिफल मौद्रिक (नकद) या वस्तु के रूप में हो सकता है। नौकरी मे दो पक्ष होते हैं पहला पक्ष नियोक्ता अर्थात मालिक एवं दूसरा पक्ष नौकर अर्थात कर्मचारी कहलाता है। नौकारी के अन्तर्गत कर्मचारी नियोक्ता के द्धारा दिये गये निर्देशों एवं आदेशो के अनुसार कार्य करना है एवं तीसरे पक्ष के प्रप्ति कर्मचारी द्धारा किये गये कार्य के लिए नियोक्ता उत्तरदायी होता है न कर्मचारी।

नौकरी को दो भागो में बांटा जा सकता है जिन व्यक्तियो को नियोक्ता के लिए कार्य करने के प्रतिफल मे पारिश्रमिक प्रतिदिन या प्रति सप्ताह दिया जाता हैं ऐसे पारिश्रमिक को मजदूरी कहा जाता है एव कार्य करने वाले व्यक्ति को मजदरू कहा जाता है। जबकि जिन व्यक्तियो को नियोक्ता द्धारा मासिक दर से पारिश्रमिक दिया जाता है उन्हे कर्मचारी तथा पारिश्रमिक राशि को वेतन की श्रेणी में रखा जाता है।

नौकरी की विशेषताएं

दो पक्ष- नौकरी संबंधी कार्य में दो पक्ष होते हैं पहला पक्ष नियोक्ता एवं दूसरा पक्ष कर्मचारी कहलाता हैं ।

अनुबंध- नौकरी के लिए कर्मचारी एवं नियोक्ता के बीच अनुबंध होना अनिवार्य होता है इसी अनुबंध के आधार पर कर्मचारी के लिए कार्य करने की दशा, नियम शर्तें वेतन व कार्य अवधि तय होता है।

सहमति- नियोक्ता एवं कर्मचारी द्धारा जो अनुबंध किये जाते हैं उसमे दोनो की स्वतंत्र एवं परस्पर सहमति होनी चाहिए।

उत्तरदायी- नियोक्ता द्धारा दिये गये निर्देशो एवं आदेशो तथा शर्तो के आधार पर कर्मचारी द्धारा किये गये प्रत्येक कार्य के लिए तीसरे पक्ष के प्रति नियोक्ता उत्तरदायी होता है न कि कर्मचारी।

परस्पर निर्भर- नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनो ही एक दूसरे पर परस्पर निर्भर रहते है। एक पक्ष के बिना दूसरे पक्ष का अस्तित्व नहीं रहता।

पारिश्रमिक- नौकरी के अन्तर्गत कार्यरत कर्मचारी को पारिश्रमिक दिया जाता है यह पारिश्रमिक नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनो के द्धारा अनुबंध से निर्धारित होता है।

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