Physics, asked by surendrafarroda46, 1 month ago

नियतांक k=1\4π का मान किन कारकों पर निर्भर करता है​

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Answered by manishadhiman31
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कूलॉम के नियम का गणितीय निरूपण

माना दो आवेश q1 तथा q2 ,  r दूरी पर स्थित है तो उनके मध्य लगने वाला आकर्षण या प्रतिकर्षण बल F है तो

लगने वाला बल दोनों आवेशों के परिमाणों के गुणनफल के समानुपाती होता है अर्थात

F ∝ q1 . q2

तथा कार्यरत बल दोनों आवेशों के आवेशों के मध्य की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

F ∝ 1/r2

अतः समानुपाती चिन्ह हटाने पर

यहाँ k = समानुपाती नियतांक कहते है।

k का मान आवेशों के मध्य उपस्थित माध्यम की प्रकृति और मात्रक पर निर्भर करता है।

शर्तें :

1. यदि आवेश निर्वात (वायु) में रखे है और बल न्यूटन (मात्रक ) में तथा दूरी (r) मीटर में है तथा आवेश कूलॉम में दिए गए है तो k (समानुपातिक नियतांक) का निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जाता है।

k = K = 9 x 109 

यहाँ ε0 (एप्साइलन जीरो ) को निर्वात की विद्युतशीलता कहते है।

निर्वात (वायु) में आवेशों के मध्य लगने वाला बल F0 है तो निम्न प्रकार से व्यक्त करते है।

2. यदि दो आवेश निर्वात (वायु) के अतिरिक्त अन्य किसी माध्यम में रखे है तो

यहाँ ε = माध्यम की विधुतशीलता कहलाता है।

अतः लगने वाला बल

कूलाम का नियम : फ़्रांसिसी वैज्ञानिक कूलॉम ने सन 1785 में आवेशित वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले आकर्षण एवं प्रतिकर्षण बलों का परिमाणात्मक अध्ययन एंठन तुला के प्रयोग द्वारा किया और इस प्रयोग से प्राप्त प्रेक्षणों के आधार पर एक नियम की स्थापना की जिसे कूलॉम का व्युत्क्रम वर्ग नियम कहते है।

कूलॉम के नियम के अनुसार “दो स्थिर बिंदु आवेशों के मध्य कार्य करने वाले आकर्षण या प्रतिकर्षण बल दोनों आवेशों की मात्राओं के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती और उनके मध्य की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह बल दोनों आवेशो को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश होता है। ”

इस प्रकार यदि बिंदु आवेशो q1 व q2 के मध्य की दूरी r हो तो कूलाम के नियम के अनुसार उनके मध्य लगने वाला आकर्षण या प्रतिकर्षण बल

F ∝ q1q2

तथा F ∝ 1/r2

अत: F ∝ q1q2/r2

F = k q1q2/r2

यहाँ  k समानुपातिक नियतांक है।

जब दोनों आवेशों को कुलाम में व्यक्त किया जाए और दोनों आवेश निर्वात या वायु में रखे हो व बल को न्यूटन में , दूरी को मीटर में व्यक्त किया जाए तो k = 1/4πε0= 9 x  109 न्यूटन.मीटर2/कूलाम2

हाँ एप्साइलन जीरो (ε0 ) , निर्वात की विद्युतशीलता है।

जब निर्वात अथवा वायु में आवेशों के मध्य लगने वाला बल F0 से व्यक्त करे तो कुलाम के नियमानुसार –

F0 = (1/4πε0) (q1q2/r2)  न्यूटन

यदि आवेश किसी अन्य माध्यम में रखे हो तो –

k = 1/4πε

यहाँ ε , माध्यम की विद्युतशीलता है।

अत: कुलाम के नियमानुसार –

F = (1/4πε) (q1q2/r2) न्यूटन

प्रयोगों से यह देखा गया कि दो बिंदु आवेशों के मध्य किसी निश्चित दूरी के लिए कार्य करने वाला बल निर्वात में सबसे अधिक होता है , किसी माध्यम के लिए –

F = F0/F = नियतांक = K = माध्यम का पराविद्युतांक

F0 व F का मान रखने पर –

ε/ε0 = K = माध्यम का पराविद्युतांक

ε = ε0 K

यह निर्वात की विद्युतशीलता (ε0) और माध्यम की निरपेक्ष  विधुतशीलता (ε) के बीच सम्बन्ध पाया जाता है।

अत: कूलाम बल के लिए व्यापक सूत्र निम्न प्राप्त होता है –

K का मान निर्वात के लिए 1 होता है जो कि K का न्यूनतम मान है। वायु के लिए K का मान 1.00054 होता है। K का मान सभी कुचालक पदार्थों के लिए 1 से अधिक होता है उदाहरण के लिए पानी के लिए K का मान 80 तथा कागज के लिए K का मान 3.5 होता है। धातुओं के लिए K का मान अन्नत होता है क्योंकि आवेशों के मध्य धातु रखने पर उन आवेशो के मध्य कार्यरत बल का मान शून्य होता है।

आवेश के मात्रक (कुलाम) की परिभाषा : कुलाम के नियम के अनुसार निर्वात में दो आवेशो के बीच लगने वाला बल –

F = Kq1q2/r2

माना q1 = q2 = 1C तथा r = 1 मीटर

तो F = K

चूँकि K = 9 x  109 न्यूटन.मीटर2/कूलाम2

अर्थात F = 9 x  109

अत: यदि निर्वात में एक मीटर की दूरी पर रखे दो समान परिमाण के आवेशो के बीच 9 x  109 न्यूटन का वैद्युत बल कार्य करे तो प्रत्येक आवेश एक कुलाम के बराबर होगा।

कुलाम के नियम का महत्व :

कूलाम के नियम के द्वारा निम्नलिखित बलों को सफलता पूर्वक समझाया जा सकता है –

अणु बनाने वाले परमाणुओं के मध्य बंधन बल की व्याख्या इसके द्वारा की जा सकती है।

किसी परमाणु के नाभिक और उसके चारों ओर घुमने वाले इलेक्ट्रॉनों के बीच लगने वाला बल को कुलाम के नियम से समझाया जा सकता है।

अणुओं अथवा परमाणुओं को परस्पर सम्बद्ध कर द्रव या ठोस बनाने वाले बल।निर्वात की विद्युतशीलता (ε0) का मात्रक =  C2N-1m-2 या कुलाम2/न्यूटन.मीटर2निर्वात की विद्युतशीलता (ε0) की विमा (विमीय सूत्र) = [M-1L-3T4A2]

कुलॉम का नियम : दो स्थिर बिंदु आवेशो के मध्य आकर्षण या विकर्षण का बल , आवेशो के गुणनफल के समानुपाती और उनके मध्य की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह बल दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश लगता है।यदि आवेशो का परिमाण q1 व q2 एवं उनके मध्य की दूरी r है तो उनके मध्य लगने वाला बल F है तो –

F ∝ q1q2;F ∝ 1/r2

अत: F ∝ q1q2/r2 अर्थात F = C q1q2/r2

यहाँ C नियतांक है जो दोनों आवेशों के मध्य स्थित माध्यम तथा चयन की गयी इकाइयों पर निर्भर करता है।

C = 1/4πε0  =  9 x  109 न्यूटन.मीटर2/कूलाम2  (SI मात्रक)

C = 1 (esu मात्रक या स्थिर वैद्युत मात्रक में)

ε0 = 8.85 x 10-12  कूलाम2/न्यूटन.मीटर2 = मुक्तावकाश की पारगम्यत

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