Hindi, asked by ChhayaKajal, 16 days ago

naari shiksha pr anuchhed​

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Answered by monikajainin
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Answer:जो अत्याचार होते हैं, महिलाओं के साथ उनकी मानसिकता बदलना बहुत जरूरी है। लेकिन यह इतनी आसान बात भी नहीं है। जो बच्चा प्राकृतिक स्कूल में पढ़ रहा है, उन्हें यह शिक्षा दी जाए कि पुरुष और स्त्री समान है।

Answer:जो अत्याचार होते हैं, महिलाओं के साथ उनकी मानसिकता बदलना बहुत जरूरी है। लेकिन यह इतनी आसान बात भी नहीं है। जो बच्चा प्राकृतिक स्कूल में पढ़ रहा है, उन्हें यह शिक्षा दी जाए कि पुरुष और स्त्री समान है। जय हिंद , जय भारत

Answered by chandergirish671
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Answer:

प्रस्तावना:

शिक्षा मनुष्य को मानवता का सच्चा स्वरूप प्रदान करती है । शिक्षा के बिना मनुष्य पशवत है । शास्त्रो में कहा है ‘विद्या विहीन: पशु:’ अर्थात विद्या या शिक्षा से विहीन मनुष्य पशु है । इसलिये प्रत्येक मानव के लिये शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है । किसी समाज की सभ्यता व प्रगति को शिक्षा के द्वारा ही मापा जाता है ।नर व नारी  दोनों मिलकर-समाज का निर्माण करते हैं । नारी के बिना नर समाज अपूर्ण है । नर को शिक्षित कर नारी को पशुवत बनाना भयकर पशुता है । इसलिए किसी भी समाज के सर्वागीण विकास के लिए नारी शिक्षा आवश्यक है । नारी नर की प्रथम शिक्षिका व गुरु है । अपनी प्रथम शिक्षिका को ही अशिक्षित रखना घोर अज्ञानता व निपट पिछड़ेपन की निशानी है ।

प्राचीन परम्परा:

हमारे शास्त्रो में कहा है जहाँ नारियों पूजी जाती है अर्थात् सम्मानित की जाती है, वहाँ देवताओ व समृद्धि का वास होता है । इसलिए हमारे यहाँ  नारियों का सम्मान करना प्राचीन परम्परा है । हम माता का नाम पिता से भी पहले लेते है । माता को स्वर्ग से बढ़कर बताया गया है । नारी, नर की सहभागिनी है ।इसलिए प्राचीन परम्परा में हर प्रकार के कर्मकाण्ड में नारी की सहभागिता अनिवार्य थी । कोई भी कार्य नारी के बिना सम्पन्न नहीं माना जाता था । इसीलिए नारी को अर्द्धागिनी कहा गया । इसका तात्पर्य यह है कि नर, नारी के बिना अपूर्ण है ।नारी पुरुष का आधा अंग है । नर-नारी मिल कर ही पूर्णाग माने जायेगे । इसलिये प्राचीन काल में नारियों को शिक्षा देने का भी विधान था । प्राचीन काल में अनेक विदुषी नारिया भारत में पैदा हुई ।

नारी शिक्षा का पतन:

भारत कई वर्षो तक पराधीन रहा । विदेशी शासकों ने यहाँ की शिक्षा व सस्कृति को झकझोर दिया । उसका प्रत्यक्ष प्रभाव नारी शिक्षा पर पड़ा । विदेशी शासको द्वारा नारियो का शोषण होने लगा । जिसके दुष्परिणाम स्वरूप बाल विवाह का जन्म हुआ । भारतीय लोग कन्या को पढ़ाने की अपेक्षा जल्दी शादी करने में रुचि लेने लगे । इसलिए नारी शिक्षा समाप्तप्राय हो गयी ।

वर्तमान समय:

आधुनिक युग विकास व विज्ञान का युग है । भारत में आज भी नारी शिक्षा में लोगों की रुचि नही रह गयी हुँ । ग्रामीण क्षेत्रों में तो पूर्ण नारी समाज अशिक्षित है । बचपन से ही भारतीय परिवारो में लड़कियों से घर का काम काज लिया जाता है और लड़को को स्कूल भेजा जाता है ।

इस पुरुष प्रधान समाज में नारी आज भी अशिक्षित है । लड़कियों को पर्दे में रखना व उन्हे अधिक लज्जालू बनाना भी नारी अशिक्षा का कारण है । इसी कारण से लड़कियों दूर के विद्यालयो में पढ़ने नहीं जा सकती हैं । नारियों के लिये शिक्षा उपलब्ध न होने से भी आज की नारी अशिक्षित रह गयी है ।

नारी शिक्षा के उपाय:

आधुनिक युग में प्रत्येक लड़के या लडकी को समान समझना चाहिये । इसीलिए प्रत्येक भारतीय को मानसिक रूप से तैयार होना चाहिये । लड़की को बचपन से ही पुरुष की तरह प्रत्येक कार्यो में भाग लेने का मौका देना चाहिये जिससे शिक्षा सस्थायों में जाने के लिए उनकी झिझक दूर हो जाये ।

लड़कियों के लिये अलग शिक्षा सस्थाओं का प्रबन्ध होना चाहिये । इसलिए हर गाँव व मुहल्लों में कन्या विद्यालयों का निर्माण किया जाये । समाज में नारी शिक्षा के महत्त्व को अधिक प्रचारित किया जाए ।

नारी शिक्षा का महत्त्व:

प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित होना चाहिये, परन्तु नारी का शिक्षित होना, पुरुष से भी अधिक महत्त्वपूण है । नारी शिक्षा का महत्त्व केवल आजीविका के लिये ही नहीं है, आपितु जीवन के हर क्षेत्र में नारी का शिक्षित होना अत्यन्त अनिवार्य है ।

शिक्षित नारी अपनी सतान को बाल्यकाल से ही प्रगति की ओर ले जाने में सक्ष्म है । एक ग्रहणी के रूप में नारी घर का कुशल सचालन करने में समर्थ होती है । एक पुरुष की सहभागिनी होने के नाते शिक्षित नारी एक योग्य व दूरदर्शी सलाहकार होती है ।

इसलिए शिक्षित नारी आजीविका भी जुटा सकती है और जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष की योग्य सहायिका सिद्ध होती है । शिक्षित नारी एक सभ्य समाज का द्योतक है । आज की नारी हर क्षेत्र मे भाग लेकर पुरुष से भी आगे पहुँच रही है ।

उपसंहार:

नारी शिक्षा को बढावा देने के लिये स्वयं नारियो को भी त्याग करना चाहिये । अधिकतर माताएँ अपनी पुत्रियो की अपेक्षा पुत्रो को ही प्राथमिकता देती है । फलत पुत्रियाँ हतोत्सहित हो जाती है । इसलिए जब तक हम मानसिक रूप से स्वयं को इस योग्य न बना ले कि लड़का लड़की समान हो तब तक नारी शिक्षा का प्रसार हुत गति से नहीं हो सकता है ।

Explanation:

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